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परिचारक वर्ग ने समझा-राजनर्तकी के पद-गौरव का यह हर्ष है। किन्तु.... कोशा के हृदय में इन सब बातों का कोई महत्त्व नहीं था।
वह तो आज मनोमूर्ति के साथ हुए प्रथम मिलन का अभिनन्दन कर रही थी।
उसको यह ज्ञात नहीं था कि मिलन का यह पहला क्षण जीवन भर टिकेगा या नहीं?
किन्तु उसके प्राणों में श्रद्धा प्रकट हो चुकी थी।
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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