Book Title: Aradhana Author(s): Bhuvanbhanusuri Publisher: Divya Darshan TrustPage 28
________________ कुशल पूछ कर) निसीहिआए - मेरे दोष का प्रतिक्रमण करके (आपके प्रति आशातनादि दोषों का त्याग यानी 'मिच्छामि दुक्कडं' करके) मत्थएण वंदामि- मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। भावार्थ हे क्षमाश्रमण । मैं आपकी कुशलता आदि की पृच्छा तथा आप के प्रति अपने दोषों का प्रतिक्रमण करके आपको वंदना करना चाहता हूँ। ___मस्तकादि पंचांग को झुकाकर, मैं आपको प्रणाम करता हूँ | मस्तक, दो घुटण, दो हाथ, ये पाँच अंग को पंचांग कहा जाता है। सूत्र--परिचय इस सूत्र से 'क्षमाश्रमण' गुरु को वंदना की जाती है। 'क्षमा-श्रमण' अर्थात् क्षमादि गुणवाले महातपस्वी गुरु अथवा तीर्थकर, गणधरादि । इस सूत्र में गुरु को तथा तीर्थंकर परमात्मादि को वंदना की गई है। क्रिया में वंदन अर्थात् पंचांग-प्रणिपात मुख्य है। अत: इसके सूत्र को प्रणिपात-सूत्र कहते है। पहले खड़े रहकर दोनों हाथ जोड़कर 'इच्छामि खमासमणो वंदिउं, जावणिज्जाए निसीहिआए' इतना बोलने के पश्चात् नीचे घुटने टेककर दोनों घुटनों के बीच में दोनों हाथ रख आगे मस्तक, इन पांचों अंगो से भूमि का स्पर्श करके 'मत्थएण वंदामि' कहते हुए वंदना की जाती है। इसे 'स्तोभ-वंदना' सूत्र कहते हैं। आगे 'वंदना सूत्र' आएगा। उसे 'बृहवंदना सूत्र' कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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