Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 131
________________ अष्ट कर्म रिपु जीतीने पंचमी गति पामी प्रभु नामे आनंदकंद, सुखसंपत्ति लहीए, प्रभु नामे भव भव तणां' पातक सब दहीए ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं वर्ण जोडी करीए, जपीए पारस नाम, विष अमृत थइ परगमे(परिणमे), पामे अविचल धाम ॥ ३ ॥ (४) सामान्यजिन चैत्यवंदन तुज मूरति ने नीरखवा, मुज नयणां तरसे, तुम गुणगणने बोलवा, रसना मुज हरखे ॥ १ ॥ काया अति आनंद मुज, तुम पद युग फरसे, तो सेवक तार्या विना, कहो किम हवे सरशे? ॥ २ ॥ एम जाणीने साहिबाए, नेक नजर मोहे जोय, ज्ञानविमल प्रभु-नजर थी, ते शुं जे नवि होय ॥ ३ ॥ ॥ १ ॥ पद्मप्रभ ने वासुपूज्य, दोय राता कहीए, चंद्रप्रभ ने सुविधिनाथ, दो उज्ज्वल लहीए मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथ, दो नीला नीरख्या, मुनिसुव्रत ने नेमनाथ, दो अंजन सरिखा सोले जिन कंचन समा, एवा जिन चोवीश, धीर विमल कविरायनो (पंडित तणो), ज्ञानविमल कहे शिष्य ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ १. के २. को ३. रहम ४. से ५. क्या ६. लाल रंग के ११८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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