Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 130
________________ भवजलनिधिपोत: सर्वसंपत्ति हेतुः स भवतु सततं व: श्रेयसे शांतिनाथ: ॥ (१) श्री शत्रुजय का चैत्यवंदन श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे, भावधरीने जे चढे, तेने भव पार उतारे ॥ १ ॥ अनंत सिद्धनुं एह ठाम, सकलतीर्थनो राय, पूर्व नवाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठविया' प्रभु पाय ॥ २ ॥ सूरजकुंड सोहामणो, कवड जक्ष अभिराम, नाभिराया कुल मंडनो, जिनवर करूं प्रणाम ॥ ३ ॥ (२) श्री सीमंधरस्वामी का चैत्यवंदन श्री सीमंधर जगधणी ! आ भरते आवो, करुणावंत करुणा करी, अमने वंदावो, सकल भक्त तुमे धणी, जो होवे अम नाथ, भवोभव हुं छु ताहरो', नहीं मेलुं हवे साथ ॥ १ ॥ सयल संग छंडी करी ए, चारित्र लइशं. पाय तुमारा सेवीने, शिव-रमणी वरशं ए अलजो मुजने घणो, पूरो सीमंधर देव, इहांथकी हुँ विनवू, अवधारो मुज सेव ॥ २ ॥ १. पधारे, पदार्पण किया, २. हमें ३. हमारे ४. तुम्हारा ५. छोड़कर ६. अभिलाषा __(३) श्री पार्श्व-प्रभु का चैत्यवंदन जय चिंतामणि पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन स्वामी, ११७ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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