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सब ही अपने स्वारथ के है, परमारथ नहीं प्रीत, स्वारथ विणसे सगो न होसी, मित्ता मन में चिंत
जगत्. ॥ २ ॥
उठ चलेगा आप अकेलो, तुं ही तुं सुविदित । को नहीं तेरा तुं नहिं किसका, एह अनादि रीत
जगत्. ॥ ३ ॥
ता ते एक भगवान भजन की, राखो मन में चिंत, 'ज्ञानसागर' कहे काफी होयी, गायो आतम गीत
जगत्. ॥ ४ ॥
(४)
अवसर बेर बेर नहि आवे, अवसर बेर बे ज्युं जाणे त्युं करले भलाई, जनम जनम सुख पावे, अवसर. १ तन धन जोबन सब ही जूठो, प्राण पलक में जावे, अवसर. २ तन छूटे धन कौन काम को, काहे कुं कृपण कहावे,
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अवसर ३ जाके दिल में साच बसत है, ताकुं जूठ न भावे, अवसर ४ आनंदघन प्रभु चलत पंथ में, सिमर सिमर गुण गावे,
अवसर ५
(५) जगमें न तेरा कोई नर देख ह निचे जोई। जगमें.... सुत मात तात अरु नारी, सहु स्वारथ के हितकारी,
बिन स्वारथ शत्रु सोइ
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जगमें. ॥ १ ॥
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