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मंत्र माहे नवकार ज जाणुं, तारामां जिम चंद्र वखाणुं,
जलनिधि जलमां जाणुं, पंखी माहे जेम उत्तम हंस, कुल माहे जेम ऋषभनो वंश
नाभि तणो ए अंश, क्षमावंतमां श्री अरिहंत, तपशूरामां मुनिवर महंत,
शत्रुजय गिरि गुणवंत
सज्झाय (१) लज्जा मोरी राखो देव जरी।। द्रौपदी राणी यूं कर वीनवे, कर दोय सीस धरी । द्यूत रसे मुज प्रीतम हायों, वात करी न खरी के लज्जा. १ देवर दुर्योधन, दुःशासन, एहनी बुद्धि फरी, चीवर खेंचे मोटी सभा मा. मनमें द्वेष धरी के लज्जा. २ भीष्म, द्रोण, कर्णादिक सब में, कौरव बीक' भरी. पांडव प्रेम तजी मुज बेठा, जे हता जीवनेश्वरी' के लज्जा. ३ अरिहंत एक आधार हमारे, शियल सुगंध धरी, पत राखो प्रभुजी इण वेला, समकितवंत सुरी के लज्जा. ४ ततखिण अष्टोत्तर शत चीवर, पूर्या प्रेम धरी, शासनदेवी जयजय बोले, कुसुमनी वृष्टि करी के लज्जा. ५ शियल प्रभावे द्रौपदी राणी, लज्जा लील वरी पांडव कुंत्यादिक सौ हरख्या, कहे धन्य 'धीर धरी
के लज्जा . ६ १ इस रीतिसे, २. भय, ३. प्राणेश्वर. ४. इज्जत (प्रतिष्ठा) की लीला, ५. धैर्य धारण कर के।
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