Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 162
________________ तू फिरत महामद माता, मूरख विषय संग राता, निज अंग की सुध बुध खोइ घट ज्ञान कला नवि जाकुं, पर निज मानत है ताकुं आखिर पछतावा होइ जगमें. ॥३ ॥ नवि अनुपम नरभव हारो, निज शुद्ध स्वरूप निहाळो, अंतर ममता मल धोइ जगमें. ॥ ४ ॥ प्रभु चिदानंद की वाणी, तू धार निश्चे जग प्राणी, जिम सफल होत भव दो जगमें. ॥ २ ॥ (६) मान मा, मान मा, मान मा रे जीव मारुं करीने मान मा. अंतकाले तो सर्व मूकीने, ठरवुं जइ शमशानमां रे जीव ॥ १ ॥ वैभव विलासी पाप करो छो, मरी तिर्यंच थाशो रानमां रे जीव ॥ २ ॥ रागना रंगमां भूला पडो छो, पडशो चोराशीनी खाणमां रे जीव ॥ ३ ॥ जगमें. ॥ ५ ॥ जगतमां तारुं कोइ नथी रे, मन राखजे भगवानमां रे Jain Education International १४९ वृद्धावस्था आवशे त्यारे, धाक पडशे तारा कानमां रे जीव ॥ ४ ॥ जीव ॥ ५ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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