Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 160
________________ सत्य शील प्रतापे कृष्णा, भवजल पार तरी, जिन कहे शीयल धरे तस जनने, नमिए पाय परी के लज्जा. ७ (२) जगत है स्वार्थका साथी, समज ले कौन है अपना । यह काया काच का कुंभा, नाहक तुं देखके फूलता, पलक में फूट जावेगा, पत्ता ज्युं डाल से गिरता मनुष्य की ऐसी जिंदगानी, अभी तुं चेत अभिमानी, जीवन का क्या भरोसा है, करी ले धर्म की करनी जगत् ॥ १ ॥ जगत् ॥ २ ॥ खजाना माल ने मंदिर क्युं कहता मेरा मेरा तू इहां सब छोड़ जाना है, न आवे साथ कुछ तेरा जगत् ॥ ३ ॥ कुटुंब परिवार सुत दारा, सुपन सम देख जग सारा, निकल जब हंस जावेगा, उसी दिन है सभी न्यारा Jain Education International जगत् ॥ ४ तैरे संसार सागर को जपे जो नाम जिनवर को, कहे 'खांति' येही प्राणी हटावे कर्म जंजीर को (३) ( काफी तप पदने पूजीजे' यह राग ) कौन किसी को मित्त, जगत में कौन किसी को मित्त, मात तात अरु भ्रात स्वजन से, काहे रह निश्चित ? तमें जगत्. ॥ १ १४७ जगत् ॥ ५ ॥ For Private & Personal Use Only || www.jainelibrary.org

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