Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 163
________________ कोक दिन जान मां तो, कोक दिन काण मां, मिथ्या फरे अभिमानमां रे जीव ॥ ६ ॥ कोक दिन सुखमां तो, कोक दिन दुःखमां, सघला ते दिन सरीखा जाण मा रे... जीव ॥ ७ ॥ सुत वित्त दारा पुत्रो ने भृत्यो, अंते ते तारा जाण मा रे.... जीव ॥ ८ ॥ आयु अथिर ने धन चंपल छे, फोगट मोह्यो तेना तानमां रे जीव ॥ ९ ॥ छेलबटुक थइ शाने फरो छो, ! अधिक गुमान मान तानमां रे जीव ॥ १० ॥ मुनि केवल कहे सुणजो सज्जन सह, मन राखजो भगवानमां रे - जीव ॥ ११ ॥ सुखदुःख कारण जीवने, कोइ अवर न होय, कर्म आप जे आचर्या, भोगवीए सोय जीव ॥ १२ ॥ १. बारात, २. रुदन, ३. बहुरुपि. पच्चखाण १. नवकारसहित (नमुक्कारसहिअ-नवकारसी २. पौरिषी (पोरिसी) ३. पुरिमार्ध ४. एकासन ५. एकलठाण ६. आयंबिल ७. उपवास ८. दिवसचरिमं अथवा भवचरिमं ९. अभिग्रह १०. विगई (घी, दूध, दही, गुड, शक्कर आदि) -यह दश प्रकार के पच्चक्खाण हैं। १५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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