Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

Previous | Next

Page 156
________________ प्रेमनु अमृत पावू छे प्रभु तारूं गीत मारे गावं छे, प्रेम, अमृत पावं छे, आवे जीवनमां तडका छाया, मागुं तारी एक ज माया, भक्तिना रसमां नहावं छे, प्रभु तारुं गीत मारे गावं छे ॥ १ ॥ भवसागरमां नाव झुकावी, त्यां तो अचानक आंधी चढी आवी, सामे किनारे मारे जावं छे, प्रभु तारुं गीत मारे गावं छे ॥ २ ॥ तुं वीतरागी हुं अनुरागी, तारा जीवननी रढ मने लागी, प्रभु तारा जेवू मारे थातुं छे, प्रभु तारुं गीत मारे गावूछे ॥ ३ ॥ प्रेमर्नु अमृत पावं छे, भक्तिना रसमां नहावं छे, सामे किनारे मारे जावं छे, प्रभु तारा जेतुं मारे थाq छे.प्रभु. श्री सुपार्श्वनाथ जिन स्तवन श्री सुपार्श्व जिनराज, तुं त्रिभुवन शीरताज, आज हो छाजे रे ठकुराइ प्रभु तुज पदतणीजी ॥१॥ दिव्यध्वनि सुरफूल, चामरछत्र अमूल, . आज हो राजे रे भामंडल गाजे दुंदुभीजी अतिशय सहजना चार, कर्म खप्याथी अग्यार, आज हो कीधा रे ओगणीस सुरगण भासुरेजी वाणीगुण पांत्रीश, प्रातिहार ज जगदीश, आज हो राजे रे दिवाजे छाजे आठसुं जी ॥२ ॥ ॥३ ॥ ॥४ ॥ १४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168