Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 154
________________ माता त्रिशलानंद कुमार, जगतनो दीवो रे, मारा प्राण तणो आधार, वीर घj जीवो रे, आमलकी क्रीडाए रमतां, हायों सुर प्रभु पामी रे. सुणजो ने स्वामी आतमरामी ! बात कहुं शिर नामी रे। वीर घj.. सौधर्मा देवलोके रहेतां, अमो मिथ्यात्वे भराणां रे, नागदेवनी पूजा करतां, शिर न धरी प्रभु आणा रे ॥ २ ॥ एक दिन इन्द्र सभामां बेठा, सोहमपति एम बोले रे, धीरज बल त्रिभुवन, नावे, त्रिशला बालक तोले रे ॥ ३ ॥ साचुं साचुं सहु सुर बोल्या, पण में बात न मानी रे, फणीधर ने लघु बालकरूपे, रमत रमियो छानी रे ॥ ४ ॥ वर्धमान तुम धैर्यज मोटुं, बालपणामां (बलमां पण) नहीं काचुं रे, गिरूआना गुण गिरूआ गावे, हवे में जाण्युं साचुरे ॥ ५ ॥ एक ज मुष्टि प्रहारे म्हारूं, मिथ्यात्व भाग्युं जाय रे, केवल प्रगटे मोहरायने, रहेवानुं नहि थाय रे ॥ ६ ॥ आज थकी तुं साहिब मारो, हुं छु सेवक तारो रे, क्षण एक स्वामी गुण न विसारं, प्राणथकी तुं प्यारो रे,॥ ७ ॥ मोह हटावे समकित पावे, ते सुर स्वर्ग सिधावे रे, महावीर प्रभुनुं नाम धरावे, इन्द्र सभा गुण गावे रे ॥ ८ ॥ प्रभु मलकता निज घेर आवे, सरिखा मित्र सोहावे रे, श्री शुभवीरनुं मुखडु जोता, माताजी सुख पावे रे ॥ ९ ॥ १. हम, २. महापुरुषों के, ३. से, ४. प्रसन्न होकर १४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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