Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

Previous | Next

Page 153
________________ जगपति भक्तोनी भांगे तुं भीड, पीड पराइ प्रभु पारखे, जगपति तुं प्रभु अगम अपार, समज्यो न जाये मुज सारिखे ॥ ४ ॥ जगपति खंभायत जंबुसर संघ, भगवंत चोवीसमो भेटियो, जगपति उदय नमे कर जोड़, सत्तर नेवुं समे कियो ॥ ५ ॥ ४ (४) गौतम विलाप स्तवन प्रभु बिन वाणी कोण सुनावे? कोण सुनावे, कोण सुनावे प्रभु बिन० जब ए वीर गये शिवमंदिर, अब मेरा संशय कोण मिटावे प्रभु. कहे गौतम गणधर " तमहर ए जिनवर दिनकर जावे रे जावे प्रभु. कुमति उलूक कुतीर्थि कुतारा, तिगतिगाट' तस थावे रे थावे प्रभु. तुम विण चउविह संघ कमल वन, विकसित कोण करावे करावे ० मोकुँ साथ लेइ कयुं न चले, चित्त अपराध धरावे धरावे. प्रभु. यूं परभाव विसारी अपनो, भाव समभाव ज लावे रे लावे. प्रभु. वीर वीर लवतां 'वी' अक्षरे, अंतर तिमिर हटावे हटावे. प्रभु. इन्द्रभूति अनुभव अनुभूतिए, ज्ञानविमल गुण पावे रे पावे. प्रभु. सकल सुरासुर हरखित होवत, जुहार करण कुं आवे रे आवे प्रभु. १. तनय, पुत्र, २. कावी के निकट में हैं, ३. कष्ट, ४. १७९० की साल में बनायो, ५. जुगनु के समान चमक, ६. तिमिर दूर करने वाले, ७. बोलते बोलते. अज्ञान १४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168