Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 152
________________ (२) जिनवाणी स्तवन (राग - अखंड सौभाग्यवती) रूडी ने रढियाली रे, वीर तारी देशना रे ए तो भली योजनमां संभलाय, समकित बीज आरोपण थाय वीर तारी १ षड् महिनानी भूख तरस शमे रे, साकर द्राक्ष ते हारी जाय रे, कुमति जनना मद मोडाय, वीर तारी देशना रे... वीर तारी २ २ चारनिक्षेपे सात नये करी रे, मांहे भली सप्तभंगी विख्यात, निज निज भाषाए समजाय.... वीर तारी ३ प्रभुजीने ध्यातां शिवपदवी लहेरे, आतम ऋद्धिनो भोक्ता धाय, ज्ञानमां लोकालोक समाय... वीर तारी ४ प्रभुजी सरिखा देशक को नहिं रे, एम सहु जिन उत्तम गुणगाय प्रभु पद पद्मने नित्य नित्य ध्याय... वीर तारी ५ १. अति सुंदर, २. नामनिक्षेपादि ३. नैगमनयादि ४. स्यात् अस्ति आदि. (३) जगपति तुं तो देवाधिदेव ! दासनो दास छु ताहरो, जगपति तारक तुं किरतार भनरो गोहन प्रभु माहरो ॥ १ ॥ जगपति ताहरे भक्त अनेक, माहरे एकज तुं धणी, जगपति वीरमां तुं महावीर, मूरति ताहरी सोहामणी ॥ २ ॥ पाणी तुं तन', गंधार बंदरे ' गाजियो, जगपति सिद्धारथ कुल शणगार, राजराजेश्वर राजियो ॥ ३ ॥ Jain Education International १३९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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