Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 147
________________ श्री शांतिनाथ जिन स्तवन (१) हम मगन भये प्रभु - ध्यान में, बीसर गई दुविधा तन मन की, अचिरासुत-गुणगान में, हम० हरि हर ब्रह्मा पुरंदर की रिद्धि, आवत नहीं कोउ मान में, चिदानंद की मौज मची है, समता रसके पान में। हम..१ इतने दिन तुम नाहिं पिछान्यो, गयो जनम सब अजान में, अब तो अधिकारी होइ बैठे, प्रभु गुण अखय खजान में। हम..२ गई दीनता अब सबही हमारी, प्रभु तुज समकित दान में, प्रभु गुण अनुभव रसके आगे, आवत नहीं कोउ मान में। हम..३ जिनही पाया तिन ही छिपाया, न कहे कोउ के कान में, ताली लागी जब अनुभव की, तब समझे एक सान' में। हम.४ प्रभु गुण अनुभव चंद्रहास' ज्यु, सोतो न रहे म्यान में, वाचक जश कहे मोह महाअरि, जित लियो मैदान में । हम..५ (२) शांति जिनेश्वर साचो साहिब, शांतिकरण इन कलि में हो जिनजी.. १. संकेत, इशारे २. तलवार तुं मेरा मन में तुं मेरा दिल में, ध्यान धरूं पलपल में १३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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