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साहिबानी..४
त्रिभुवन लीला पामे तेह भवो भव मागु रे प्रभु तारी सेवना रे, भावठ न भांगे रे जगमा जे विना रे, प्रभु मारा पूरजो मनना कोड, एम कहे उदयरतन कर जोड
साहिबानी..५
मैं सिद्धाचल की भक्ति रचा... सुख पा..लू..रे, कर आदिनाथ को वंदन,... पाप खपा..ा.. रे ॥ टेक ॥ जो मोर कहीं बन जाऊं, प्रभु आगे नृत्य रचाऊं, रावण की तरह मैं तीर्थंकर पद की पूँजी कमा..लू.रे
शिवसुख पा..~... रे मैं सिद्धाचल की... ॥ १ ॥ जो कोयल मैं बनजाऊं, प्रभुजी के गाने गाऊँ, मैं दीनानाथ को रिझा-रिझा कर, अपना भाग्य जगा...लूँ रे,
शिवसुख पा...लूँ.. रे मैं सिद्धाचल की... ॥ २ ॥ इस गिरि एक-एक कंकर, हीरे से भी मोल है बढ़कर, कोई चतुर जौहरी अगर मिले तो, सच्चा मोल करा..लूँ रे,
शिवसुख पा..लूँ.. रे मैं सिद्धाचल की.... ॥ ३ ॥
१. छोटा पर्वत, २. तीर्थयात्री, १.पादविहारी, २.ब्रह्मचारी, ३.भूमि ४.संथारी, ५.एकल आहारी, ६.सचित-परिहारी, षडावश्यककारी होता है। ३. शीघ्र, ४. उत्तम.
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