Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 141
________________ शत्रुजय शत्रु विनाशे, आत्मा की ज्योत प्रकाशे, मैं भाव भक्ति के रंगमे अपना, जीवन वस्त्र रंगा..रे, शिवसुख पा.लूँ.. रे मैं सिद्धाचल की..... ॥ ४ ॥ समता का द्वार बनाखू, तप की दीवार चिनाखू, जहाँ राग-द्वेष नहीं घुसने पाये, ऐसा महल बना...लूँ रे, शिवसुख पा..लूँ.. रे मैं सिद्धाचल... ॥ ५ ॥ कार्तिक पूनम दिन आये, मन यात्रा को हुलसाये, मैं राम धर्म का नीर सींचकर, आतम बाग खिला..लूँ रे, शिवसुख पा..ा.. रे मैं सिद्धाचल की.... ॥ ६ ॥ सिद्धाचल वंदो रे नरनारी, नरनारी.. नरनारी... विमलाचल वंदो रे नरनारी (टेक) नाभिराया सुत मरुदेवा नंदन, ऋषभदेव हितकारी. सिद्धा...१ पुंडरिक पमुहा बहुमुनि सिद्धा, आतमतत्त्व विचारी. सिद्धा..२ शिवसुख कारण भवदुःख वारण, त्रिभुवन जन हितकारी. सिद्धा..३ समकित शुद्ध करण ए तीरथ, मोह मिथ्यात्व निवारी. सिद्धा..४ ज्ञान उद्योत प्रभु केवलधारी, भक्ति करुं एक तारी. सिद्धा..५ श्री ऋषभ-जिन के स्तवन (१) बालुडो नि:स्नेही थइ गयो रे, छोड्यु विनीता, राज, छोड्युं. १२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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