Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 136
________________ त्रिभुवन ठकुराइ अब पाइ, कहो तुम को कुण सारे, आप उदासीन भाव में आये, दासकुं क्युं न सुधारे.... जिणंदा तुंही, तुंही, तुंही, तुंही, तुंही जे चित्त धारे, याही हेतु जे आप स्वभावे, भवजल पार उतारे..... जिणंदा ज्ञानविमल गुण परमानंदे, सकल समीहित सारे, बाह्य आभ्यंतर ईति उपद्रव अरियण दूर निवारे... जिणंदा श्री सीमंधर जिन स्तवन तारी मूरतिए मन मोह्य रे...मनना मोहनिया, तारी सूरतिए जग सोह्यं रे..जगना जीवनिया..१ तुम जोतां सवि दुरमति वीसरी, दिनरातडी नवी जाणी, प्रभु गुण गुण सांकलशुं बांध्यु, चंचल चित्तडु ताणी रे पहेला तो एक केवल हरखे, हेजालु थइ हलियो, गुण जाणीने रूपे भलियो, अभ्यंतर जइ मलियो रे मनना...३ वीतराग इम जस निसुणीने, रागी राग धरे, आप अरूपी राग निमित्ते, दास अरूप करेह रे श्री सीमंधर तुं जगबंधु, सुंदर ताहरी वाणी, मंदर भूधर अधिक धीरज धर, वंदे ते धन्य प्राणी रे श्री श्रेयांसनरेसर-नंदन, चंदन शीतल वाणी, सत्यकी माता, वृषभ लंछन प्रभु, ज्ञानविमल गुण खाणी रे मनना..६ मनना..२ मनना...४ मनना...५ १. याद किए, २. अरिजन, ३. मुग्ध हुआ. १२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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