Book Title: Aradhana Author(s): Bhuvanbhanusuri Publisher: Divya Darshan TrustPage 58
________________ तभी रुकें जब इनके त्याग की प्रतिज्ञा ही कर ली जाए। उस प्रतिज्ञा से सावद्य प्रवृत्तियाँ रुक जाती हैं । फलतः तदविषयक रागादि नहीं होते हैं, और कुछ अश में समभाव का आविर्भाव होता है । इस समभाव की क्रियारूप सामायिक वारंवार व आजीवन करने योग्य है । वारंवार किये गए ४८ मिनिट के सामायिक का जीवनपर्यन्त हर्ष-खेद अथवा राग-द्वेष के प्रसंगो पर प्रभाव पड़ता है। कहा भी है कि सामायिक करते समय श्रावक भी श्रमण के समान ( सर्वपापरहित तथा समभावयुक्त) होता है, इस लिए सामायिक बहुवार करना चाहिए । सामायिक का महत्त्व बताते हुए कहा गया है कि करोड़ों जन्मों तक तीव्र त्रास को सहकर भी जीव जिन कर्मों का क्षय नहीं कर सकता, पापों का नाश नहीं कर सकता, इन्हें समभाव से युक्त जीव आधे क्षण में नष्ट कर सकता है दूसरे शब्दो में कहें तो सामायिक एक उत्कृष्ट योग-साधना 1 है । आत्मा से बद्ध कर्मों का आधे क्षण में क्षय करनेवाले सामायिक का अपने जीवन में नित्य सेवन करें। सामायिक यह श्रावक जीवन (मानवजीवन) का सार (CREAM) है । जीवन का आभूषण है। वीतरागता तक पहुंचाने वाली गाडी है। परमात्मभाव प्रगट करने की चाबी है । दुःखों का अंत लाने का उपाय है । भयमुक्त होने का पिज्जर है । Jain Education International ४५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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