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भावार्थ अरिहंत-चैत्यों अर्थात् जिन-प्रतिमाओं के वंदन, पूजन, सत्कार, व सम्मान के लाभ, बोधिलाभ (सम्यक्त्वादि जैनधर्म की प्राप्ति) तथा मोक्ष के निमित्त मैं काउस्सग्ग करना चाहता हूँ। बढ़ती हुई श्रद्धा, प्रज्ञा, स्थिरता, स्मृति एवं सूत्रार्थ-चिन्तन द्वारा मैं काउस्सग्ग में स्थिर होता हूँ। ___ इसमें वंदन, पूजन, सत्कार, सम्मान, बोधिलाभ तथा मोक्ष ये छ: कायोत्सर्ग के निमित्त (प्रयोजन या उद्देश्य) है । इस उद्देश्य की सिद्धि के लिए कायोत्सर्ग है । इसमें वंदन, पूजन, सत्कार, सम्मान किन का? तो कि अर्हत् चैत्यों अथवा प्रतिमाओं का। ___ 'अरिहंत चेइआणं' पद 'वंदणवत्तिआए' से 'सम्माणवत्तिआए' तक के केवल चार पदों के साथ जोड़ा ,जाता है। अत: इन चार पदों को बोलकर स्वाभाविक रूप से रुकना चाहिए। तत्पश्चात् 'बोहिलाभ० निरुवसग्ग०,-' ये दो पद साथ बोले। इन छ: पदों के साथ पूर्व का ‘करेमि काउस्सग्गं' अन्वित होगा। ____ यहाँ बोधिलाभ का अर्थ केवल सम्यक्त्व नहीं किंतु 'जैन धर्म' की प्राप्ति है, अर्थात् सम्यक्त्व से लेकर वीतरागता तक के धर्म हैं। अन्यथा क्षायिक-सम्यक्त्वी अर्थात् शाश्वत सम्यक्त्वयुक्त जीव इस पद को क्यों बोले? परन्तु इसे सम्यक्त्व से आगे बढ़कर देशविरति से वीतरागता तक के धर्म भी इष्ट हैं, इनके निमित्त यह कायो० इष्ट है; इस वास्ते इस पद का उच्चारण किया जाता हैं । अत: इन सबधर्मों का समावेश बोधिलाभ में होता है।
अन्त के पाँच पद ‘सद्धाए' आदि हेतु-पद हैं, ये कायोत्सर्ग
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