Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 119
________________ नवाङ्ग का परिचय और नवाङ्गी पूजा में प्रार्थना पंडित श्री वीरविजयजी म. ने इन दोहाओं में भगवान् के द्वारा किए गए, त्याग और साधना का वर्णन किया है । चौबीस तीर्थंकरों में से किसी भी भगवान की तिलक-पूजा करें उस समय जिस अंग को स्पर्श किया जाय उसमें निम्नलिखित प्रकार से भगवान् के जीवंत चित्र की मन में कल्पना या विचारणा करनी चाहिए। अंग- १ चरण हे भगवन् ! आपके जिन चरणों को चूम कर बड़े बड़े गणधर व इन्द्रगण पवित्र हुए हैं उनका मैं भी स्पर्श करता हूँ मुझे पवित्र करें। हे भगवन् ! भव्य जीवों को प्रतिबोधित करने के लिए आपने अनेक स्थानों में विहार किया। विश्व पर आपका असीम और अनन्त उपकार है। अत: आपके चरण धोकर हमारे सर पर लगाने योग्य हैं। हे भगवन् ! आपकी चरण - पूजा के प्रभाव से मुझे ऐसी शक्ति.प्राप्त हो कि जिससे मैं भी स्वपर हितकारी विचार कर सकूँ। [भगवान महावीर स्वामी की पूजा करते समय वह प्रसंग याद कर सकते है कि जब इन्द्र का संशय हटाने हेतु उन्होंने बालरूप में अंगूठे से मेरू को कंपायमान कर अरिहंत की अनन्त शक्ति का परिचय दिया था। १०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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