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तब तथा वहाँ आपको अपने दिमाग में सतत पर- हित का ही चिन्तन करते हुए देखा है। दिमाग में आपने सदैव सब जीवों के आत्मकल्याण का ही विचार किया है। इस आत्मचिंतन और आत्मध्यान में अनवरत लीन आपका दिमाग यानी मस्तक वस्तुतः पूज्य है।
हे भगवन्! आपकी मस्तक-पूजा के प्रभाव से मुझे भी सिद्धशिला पर वास एवं तदर्थ ऐसी शक्ति प्राप्त हो कि मैं हर क्षण आत्मचिंतन में रहूँ, परहित के विचार में रहूँ । अंग - ६. ललाट
हे भगवन् ! त्रिभुवन के लोग अपने ललाट पर आपके चरण को तिलक रूप में लगाते हैं, अतः आप त्रिभुवन- तिलक हैं।
हे भगवन्! आप त्रिकालज्ञानी थे। आप जानते थे कि आपके ललाट पर क्या लिखा है । तथापि आपने अपनी आत्मसाधना लगातार चालू रखी थी। अज्ञानियों ने आपको अनेक कष्ट दिए। ऐसे अवसरों पर आप विचलित नहीं हुए, कष्टों से भागे नहीं । दुखित नहीं हुए। देवताओं, राजाओं, और स्थिति - संपन्न जनों ने आपकी अर्चना की । उससे आप हर्षित नहीं हुए। शिष्ट व दुष्ट की ओर से पूजा और पीड़ा दोनों प्रसंगों में आप समभाव में ही स्थिर रहे । आपके ललाट की रेखाओं और नसों में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ। ऐसे सम और शांत ललाट की मैं पूजा करता हूँ ।
हे भगवन् ! आपके ललाट की पूजा के प्रभाव से मुझे ललाट पर ऐसी श्रद्धा प्राप्त हो कि जिससे ललाट - अंकित को
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