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राग-द्वेषादि कम हो जाते हैं, आपके ध्यान से ही यावत् इनका सर्वथा संपूर्ण अन्त हो जाता है, इसलिए जीव को संसार से छूटकारा और मोक्ष मिलता हैं। यह सब कुछ आपका ध्यान करने से ही होता है, फलत: आपके ही प्रभाव से मोक्ष प्राप्त होता है।
हे प्रभो ! आपने संसार को ठीक ही समझाया है कि यह संसार दुःखमय है। कारण यह है कि इसमें जन्ममरण का चक्र चलता रहता है। उच्च देव-जन्म पाकर भी मरना पड़ता है ! बाद में अति तुच्छ अशुचि स्थान में जाना पड़ता है, वहाँ अशुद्ध गन्दा आहार करना पड़ता है। अन्यच्च, संसार में रोग, शोक, दरिद्रता, मारपीट, अपमान, दुर्घटना, चिंता, भय, संताप आदि दुःखो का पार नहीं। इसीलिए प्रभो ! आपने सकल संसार के त्याग का ही पुरुषार्थ करके अपनी आत्मा का संसार में से उद्धार किया। अत: मैं आपसे यही याचना करता हूँ कि ऐसे दुःखमय, विडम्बनामय और पापों व पराधीनता से भरपूर संसार के प्रति मुझे भी तीव्र घृणा हो, वैराग्य हो। आप मेरे मन में ग्लानि, उद्वेग, अरुचि उत्पत्र कर योग्य पुरुषार्थ द्वारा मुझे मोक्ष दिलवाओ।
हे करुणासिंधो ! आपने पूर्व भवों से ही कितनी महान् अद्भुत धर्म-साधना की थी! हे महावीर देव ! आपने तो पूर्व के तीसरे यानी २५ वें भव में एक लाख वर्ष तक सतत मासखमण के पारणे मासखमण किये। इसकी तुलना में मैं क्या करता हूँ ? खानपान का संसार मुझे कहाँ खटकता है? मुझे खानपान खोटा कहाँ प्रतीत होता है? प्रभो ! इस कुटिल
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