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चैत्यवंदन की विधि
१. सर्वप्रथम मन्दिरजी में तीन खमासमण देना । तत्पश्चात् दायां घुटना भूमि पर व बायां घुटना थोड़ा-सा खड़ा रखकर व उत्तरासंग पहिनकर दो हाथ योगमुद्रा से जोड़ रखना व बोलना 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूँ ?' 'इच्छं' ।
२. 'सकलकुशलवल्ली ०' बोलकर चैत्यवंदन बोलना। फिर ३. 'जंकिंचि०' कहकर 'नमुत्थुणं०' कहना । तत्पश्चात् ४. मस्तक के आगे दो हाथ मुक्तासुक्तिमुद्रा से जोड़कर 'जावतिचेइआइं०' कहकर एक खमासमण देना बाद में उसी मुद्रा से
५. 'जावंत केवि साहू०', कहकर योगमुद्रा से 'नमोऽर्हत् ० ' बोलना | बाद में
६. स्तवन गाना, या 'उवसग्गहरं' का पाठ पढ़ना, फिर
७. मस्तक के आगे दोनों हाथ मुक्तासुक्तिमुद्रा से जोड़कर 'आभवमखण्डा' तक 'जयवीयराय' सूत्र पढ़कर दोनों हाथ नीचे करके जयवीयराय का शेष भाग पढ़ना। तत्पश्चात्
८. खड़े होकर 'अरिहंत चेइआणं०' बोलकर अन्नत्थ के पाठ के पश्चात् एक नवकार का काउस्सग्ग करना। उसके अनन्तर
९. काउस्सग्ग पारकर 'नमोऽर्हत्०' कहना व थुई, (स्तुति) पढ़ना । [तदुपरांत सकल संघ के लिए तीन खमासमण देना । इससे हम दूसरों को कह भी सकेंगे कि तुम्हारे लिए भगवान् का दर्शन, वंदन किया था। इसमें हमारी अनुमोदना भी रहती है।]
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