________________
साफ सुथरे वस्त्र पहनकर जिनमंदिर में जाना। जिनपूजा के समय पुरुषों को धोती और दुपट्टे का प्रयोग अवश्य करना चाहिए ।यह धोती रोज की रोज धोई हुई चाहिए जिससे पूर्व दिन का पसीना दूर हो।
२. जिनपूजा के समय की अवधि में अर्थात् घर से मंदिरजी जाते समय, व मंदिरजी से घर आते समय, तथा मंदिरजी में ठहरने के समय तक जिनेश्वर भगवान् के जीवन-प्रसंगो और उनके उपदेशवचनों के अतिरिक्त अन्य किसी विषय का या बात का विचार भी नहीं करना, मन में सतत भगवान् का रटन करना, उनके गुणों का चिंतन करना।
३. जिनपूजा के लिए अपने केशर, धूप, अगरबत्ती आदि द्रव्यों का उपयोग करना चाहिए। ऐसी अनुकूलता या सुविधा न हो तो मंदिरजी की ओर से बेचे जानेवाले इन द्रव्यों से पूजा करना। जिनपूजा के लिए अपनी अगरबत्ती, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, फल तथा घी का दीपक आदि ले जाना चाहिए।
४. जिनपूजा करते समय दुपट्टे के किनारे से आठ परत (तह) करके मुँह और नाक बाँधना। शान्त चित्त से हम पर भगवान् द्वारा किए गए उपकारों का स्मरण करते हुए भगवान को अभिषेक आदि कर के उनके नव अंगों की पूजा करना। ये नवांग क्रमश: इस प्रकार है,--
१. चरण, २. घुटना, ३. कलाई, ४. स्कंध या कंधा, ५. मस्तक का मध्य भाग, ६. ललाट, ७. कंठ, ८. हृदय, ९. नाभि ।
जिनेश्वर भगवान् के इन नव अंगों की पहले चन्दन-केशर-वर्क
१०२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org