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- श्रेष्ठ
तुह नाह
- हे नाथ ! आपको पणाम-करणेणं - प्रणाम करने से सर्वमंगल
- समस्त मंगलों का माङ्गल्यं
- मंगलभाव (रूप/शासन) सर्वकल्याणकारणं - समस्त कल्याणों का कर्ता प्रधानं सर्वधर्माणां - सभी धर्मों में जैन
- जिनेश्वरदेव का जयति
- जयवान रहता है शासनम्
- शासन
भावार्थ हे वीतराग जगद्गुरु ! आप मेरे हृदय में जयवन्त रहें, आपकी जय हो । हे भगवन् ! आपके प्रभाव से मुझे (१) भवनिर्वेद' अर्थात् संसार के प्रति वैराग्य बना रहे, अर्थात् संसारिक विषयों के प्रति विरक्ति बनी रहे । (२) 'मार्गानुसारिता' अर्थात् मोक्षमार्ग के अनुकूल वृत्ति तथा व्यवहार जारी रहे; अथवा तत्त्वानुसारिता-निस्सार बात की उपेक्षा व तात्त्विक बात की अपेक्षा हो असद् अभिनिवेश का त्याग हो। 'इट्ठफलसिद्धि' = देवदर्शनादि मोक्षमार्ग की साधना चित्त की स्वस्थतापूर्वक होती रहे इस हेतु आवश्यक इच्छित कार्य (आजीविकादि) की सिद्धि हो। ॥ १ ॥
हे प्रभो ! मुझे ऐसी शक्ति प्राप्त हो कि जिससे मैं 'लोकविरुद्ध' यानी लोकनिंद्य कार्य का त्याग कर, एवं जिससे लोक को संक्लेश हो एसे कार्य करने का त्याग करूं । गुरुजनों के प्रति आदर और सेवाभाव रखू । परसेवा-परोपकार-परहित करता रहूँ।
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