Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून २००९
चत्तारि छच्च अट्ठ य, छऽट्ठ छच्वेग अट्ठ चत्तारि । चत्तारि य कोडीओ, निहि-वुड्ढि-पवित्थरेसु कमा ॥९॥ चत्तारि छच्च अट्ठ य, छऽट्ठ छच्चेग अट्ठ चत्तारि । चत्तारि वया दस - गोसहस्समाणेण विन्नेया ॥१०॥
[इति श्रावकाणां समृद्धि: गोव्रजसङ्ख्या च] सिरिवीरजिणसगासे, सावयधम्मो दुवालसविहो वि । पडिवन्नो सव्वेहिं वि, तत्तो वरिसम्मि पन्नरसमे ॥११॥ जिट्ठसुए ठविऊणं, गिहभारं सावयाण पडिमाओ । एकारस पडिवन्नाओ वीसं वासाई परियाओ ॥१२॥
[इति श्रावकाणां धर्मप्राप्तिः प्रतिमाश्च] ओहिन्नाण पिसाए, माया वाहिंधण उत्तरिज्जे य । भज्जा य सुव्वया, दुव्वया निरुवसग्गा दोन्नि ॥१३।।
[इति श्रावकाणां वैशिष्ट्यम्] अंते कयाणसणा मासियसंलेहणा य सोहम्मे ।। उप्पन्ना सुहभावा एएसुं वरविमाणेसुं ॥१४॥ अरुणे अरुणाभे खलु, अरुणप्पह अरुणकंतऽरुणसिढे । अरुणज्झए य छटे, अरुणभूते य सत्तमए भणिए ॥१५॥ अरुणवडिं से अरुणग्ग्गे य, दसमे तह अरुणकीलए । चउपलियाऽऽऊ चविउं सिज्झिस्संती विदेहेसु ॥१६॥
[इति पर्यन्ताराधना, सुरविमानानि च] इति पीठिका ॥ [१] [आनन्दश्रावककथानकम्-]
तत्थ य पढमं समणोवासग-आणंदनामधेयस्स । भव्वाण कयाणंदं चरियं परिकित्तइस्सामि ॥१७॥ अस्थि इह भरहवासे, वाणियगामाभिहाण वरनयरं । तं पालइ हयसत्तू, राया नामेण जियसत्तू ॥१८॥ तत्थ सुहि-सयण जणमणकुमुयवणवियासणे अमियकिरणो । आणंदनामधेयो निवसइ गाहावइप्पवरो ॥१९॥
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