Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 17
________________ ८ राया नायरलोओ आणंदो गिहवई वि ओसरणे । पविसित्तुत्तरदारे काऊण पयाहिणं पहुणो ॥ ४८॥ पणि (ण) मित्तु चलणजुयलं उवविट्टो पुव्वउत्तरदिसाए । तो धम्मकहं एवं वीरजिणो कहिउमाढत्तो ||४९|| भो भो भव्वा सव्वे वि, पाणिणो सुक्खकंखिणो लोए । सुक्खं पुण धम्माओ पाविज्जइ, सो य इह दुविहो ||५०|| पढमो मुणीण धम्मो बीओ सुस्सावयाण विन्नेओ । पंचमहव्वयरूवो, पढमो सम्मत्तसहियस्स ॥५१॥ जीववह- मुसा - ऽदत्ता - मेहुन्न - परिग्गहेसु जाजीवं । तिविहतिविहेण विरई अक्खेवेणेस सिवजणओ ॥५२॥ पंचाणुव्वय-तिगुणव्वयाई सिक्खावयाइं चत्तारि । सम्मत्तेण जुयाई सावयधम्मो इमो बीओ ॥५३॥ एसो वि कमेणं चिय सिवपुरपहपवरसंदणसरिच्छो । जं भवगहणं नित्थारिऊण पावेइ सिवनयरं ॥ ५४ ॥ जे पुण पमायवसओ एयं दुविहं पि नो पवज्जंति । ते बद्धनिबिडकम्मा भमंति संसारकांतारे ॥५५ ॥ अनुसन्धान ४८ तम्हा जो सिग्घं चिय मुत्तिसुहं वंछए निराबाहं । सो साहुधम्मपडिवज्जणेण सहलं कुणउ जम्मं ॥५६॥ जो पुण तं असमत्यो काउं, सो सावयाणमिह धम्मं । सम्मत्तमूलमइयार - वज्जियं सम्ममायरउ ॥५७॥ अक्खेवमोक्खसोक्खा भिलासिणो जे महासत्ता । ते तिहुयणपहुवयणं, सोऊण वयं पवज्जंति ॥५८॥ असमत्था जे काउं पव्वज्जं, ते वि सावयवयाई । सम्मत्तसंजुयाई पडिवन्ना वीरपासम्म ॥५९ ॥ जियसत्तुनरवरिंदो वंदिय पयपंकयं जिणिदस्स । नियनयरमणुपविट्ठो नायरलोएण सह तुट्ठो ||६०|| आणंदो वि हु सवणंऽजलीहिं जिणणाहवयणकमलाओ । वयणामय-मयरंदं पाउं भमरो व्व संतुट्ठो ||६१|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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