Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 87
________________ ७८ अनुसन्धान ४८ प्रतिवादी :- इनका कहना है कि यह अनाचार नहीं है । ५. वादी:- पार्श्वस्थ आदि को सर्वथा वन्दन नहीं करना । प्रतिवादी :- जिसमें ज्ञानदर्शन हो और चारित्र की मलिनता हो उसको भी उस गुण के आश्रित वन्दन करना चाहिए । ये पाँचों प्रश्न जब निर्णायकों के समक्ष रखे गए तो उन्होंने पंचागी (मूल नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य, टीका) सहित आगम साहित्य को प्रमाण मानकर, उनके उद्धरण देकर अपना निर्णय दिया । आगम साहित्य और प्रकरण साहित्य के अतिरिक्त अन्य किसी का भी उद्धरण नहीं दिया है । यत्र-तत्र नैयायिक शैली का भी प्रयोग किया है । उद्धरण के रूप में उल्लेखित ग्रन्थों के नाम अकारानुक्रम से दिए गए हैं : अङ्गचूलिका, अनुयोगद्वार सूत्र-सटीक, आचारदिनकर, आचारांग सूत्रटीका सहित, आवश्यक सूत्र नियुक्ति-बृहद्वृत्ति, आवश्यक सूत्र (नवकार मंत्र-लोगस्स-वैयावच्चगराणं पुक्खरवरदी-सिद्धाणं बुद्धाणं-अरिहंत चेइयाणं आदि) उत्तराध्ययन सूत्र-टीका, उपदेशमाला वृत्ति सहित, ओघनियुक्ति-सटीक, औपपातिक सूत्र, चतुःशरण प्रकीर्णक, चैत्यवन्दनभाष्य-अवचूरि-टीका, जीवाभिगम सूत्र-सटीक, ज्ञाताधर्मकथा सूत्र-टीका, कल्पसूत्र संदेहविषौषधी टीका, टीकाएं, नन्दीसूत्र, निशीथ सूत्र भाष्य-चूर्णि-टीका, पंचवस्तु टीका, पंचाशक टीका, पिण्डनियुक्ति, प्रज्ञापना सूत्र, प्रतिष्ठा कल्प-उमास्वाति, प्रतिष्ठाकल्प-पादलिप्ताचार्य, प्रतिष्ठाकल्प-श्यामाचार्य, प्रवचनसारोद्धार-सटीक, बृहद्कल्पसूत्र-भाष्य-नियुक्तिटीका सहित, भगवतीसूत्र-सटीक, मरणसमाधि, महानिशीथ सूत्र, योगशास्त्र, राजप्रश्नीय सूत्र, ललित विस्तरा (चैत्यवन्दन सूत्र टीका), व्यवहार भाष्यचूर्णि-टीका, षडावश्यक लघु वृत्ति, सूत्रकृतांगसूत्र, स्थानांग सूत्र सटीक। इन दोनों निर्णायकों ने अपने निर्णय में श्री झवेरसागरजी के मत को परिपुष्ट किया है और वादी श्री विजयराजेन्द्रसूरि के मत का निराकरण किया है। वृद्धजनों के मुख से मैने यह सुना है कि उक्त निर्णय के पश्चात् श्री विजयराजेन्द्रसूरिजी महाराज ने उक्त निर्णय को पूर्ण मान्यता देने और अपने मन्तव्य को बदलने का प्रयत्न किया । इसी समय मालवा और गोड़वाढ़ के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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