Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ४८
पच्चखुभिए साहा-वियरूवधरो गयणसंठिओ देवो । सक्कपसंसं कहिउँ खामेउं पडिगओ तत्तो ॥१३२।। तम्मि समए वीरो समोसढो पुन्नभद्दउज्जाणे । गच्छइ य कामदेवो स-पोसहो जिणवरं नमिउं ॥१३३।। धम्मकहाए अणंतर कहिउं वीरेण राइवुत्तंतं । ससुरासुरनरपरिसाए पसंसिओ कामदेवगिही ॥१३४॥ आमंतेउं गोयम-पभिई समणे उ तह य समणीओ । भणिया 'जिणसमये, जइ गिही वि एवं अवलंबित्ता (अचलवित्ता)॥१३५।। तो साहु-साहुणीहिं गणिपिडगिकारसंगधारीहिं । होयव्वमचलेहिं विसेसं तु (विसेसतो) मोक्खकंखीहिं ॥१३६।। तो नमिय कामदेवो पुच्छिय पसिणाइं अट्ठमायाय । पमुदियचित्तो पारिय पोसहं नियगिहं पत्तो ॥१३७॥ सावयपरियायं सो परिवालिऊण वीसवासाई । काऊणं मासमेगं पज्जंते अणसणं विहिणा ॥१३८॥ सोहम्मे चउपलियो अरुणाभविमाणअहिवई देवो । महाविदेहे सिज्झिस्सइ खीणकम्ममलो ॥१३९।।
इति कामदेवकथानकं । छ । २ । मङ्गलं महाश्रीः ।।छ।। ३ - [सिरिचुलणीपियासावगकहाणयं]
कासीविसए वाणा-रसीए जियसत्तु कुट्ठमुज्जाणं । चुलणीपिया गिहवई भद्दा माया, पिया सामा ॥१४०।। कोडीओ हिरन्नस्स उ अट्ठ निहि-वुड्ढि-वित्थरेसु कमा । अट्ठ वया, जिणपासे सावयधम्मस्स पडिवत्ती ॥१४१॥ पोसहिय बंभयारी देवागमणं च पुत्ततियगस्स । तिन्नेव मंससोल्ले काउं रुहिरेण सिंचेइ ॥१४२।। अक्खुभियं तं नाउं भणइ सुरो मायरं इमं भदं । देव-गुरूण समाणिं तुह दुक्खकारयं हणिउं ॥१४३।। तिन्नेव मंससोल्ले काउं रुहिरेण हं तुमं सिंचे । अट्टवसट्टो होऊण तुमं अकाले विवज्जिहिसि ॥१४४॥
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