Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 36
________________ जून २००९ २७ अह अन्नया कयाई पुणो वि सा रेवई महासयगं । पभणइ पुव्वगमेणं पोसहसालं समुवगम्म ॥३०९।। मुत्तूण य मज्जायं वारा दो तिन्नि भणइ सा जाव । तो वयणमासुरत्तो दाउं अवहीए उवओगं ॥३१०॥ पभणइ महासयगो रेवईए अल्लसरोग-अभिभूया । अट्टदुहट्टा मरिउं, रयणप्पह पढमपुढवीए ॥३११।। लोलुयम्मि नरए चउरासीवरिससहस्सठिइम्मि । नेरइयत्ताए तुमं उववज्जसि सत्तरत्तंतो(ते) ॥३१२।। विगयमया भयभीया, तत्तो सा सुणिय भत्तुणो वयणं । चिंतइ कुमारेणं केण वि मं मारिही रुट्ठो ॥३१३।। ता नूणमवक्कमणं जुत्तं ति चिंतिऊण नियगेहं । पत्ता अट्टदुहट्टा अलसरोगेणं मरिऊणं ॥३१४॥ उप्पन्ना रयणप्पह-पुढवीए लोलुअच्चुए नरए । नेरइयत्ताए महा-दुक्खानलतत्तगत्ता सा ॥३१५॥ एत्थंतरम्मि भयवं वीरजिणो गोयमाइसमणेहिं । जुत्तो पत्तो वीभारपव्वए गुणसिलुज्जाणे ॥३१६॥ तत्थ समोसरणम्मि विहिए देवेहिं वीरजिणचंदो । सेणियनिवम्मि पत्ते सनायरे धम्ममह कहइ ॥३१७।। तयणंतरमामंतिय गोयमगणहारिणं जिणो भणइ । इह रायगिहे नयरे अंतेवासी ममं अत्थि ॥३१८॥ नामेण महासयगो उवासगो विहियसावयप्पडिमो । संलेहणं च काऊणं पडिवन्नो अणसणं विहिणा ॥३१९।। तस्स तयावरणखओवसमाओ ओहिनाणमुप्पन्नं । आगम्म भोगलोला तब्भज्जा रेवई तत्थ ॥३२०॥ उवसग्गं कुणमाणी भणिया रुद्रेण तेण सा एवं । मरिउं नरए गमिहिसि रेवइ ! ए ! सत्तरत्तंतो ॥३२१।। तं[न] उवजुत्तं, जम्हा पडिवन्ने उत्तमम्मि ठाणम्मि । संतेण वि जेण परो दृमिज्जइ, तं न वत्तव्वं ॥३२२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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