Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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२E
अनुसन्धान ४८
सीलव्वयाई सम्मं पालंतो सावगो महासयगो । वरिसाण चउद्दसगं अइक्कमित्ता महाभागो ॥२९५।। पन्नरसम्मि य वरिसे जिट्ठसुए गिहभा(भ)रं निवेसेउं । पोसहसालाए सयं पडिवज्जइ धम्मपन्नत्तिं ॥२९६।। तत्तो सा तब्भज्जा उम्मत्ता भोगलोलुया संती । उम्मुक्ककेसपासा पोसहसालं उवागम्म ॥२९७।। मोहुम्मायकराई इत्थीजणसुलहहावभावाइं। उवदंसंती पभणइ नियभत्तारं महासयगं ॥२९८।। 'हं हो ! समणोवसग ! मए समं जं न भुंजसे भोए । तं किं धम्मे पुन्ने सग्गे मोक्खे[व] अहिलासो ? ॥२९९।। धम्माणुभावओ च्चिअ भोगा लब्भंति पुन्नमंतेहिं । ते तुज्झ संति विउला तो धम्मेणं किमन्नेणं ॥३००।। तरुणो पुरिसो तरुणी य इत्थिआ, ताण जं परा पीई । सो च्चिय सग्गो भन्नइ बुहेहिं सो तुज्झ साहीणो ॥३०१।। अदिट्ठमुक्खसुक्खस्स कारणे दिट्ठभोगपरिहरणं । जं कुणसि तं न जुत्तं जम्हा मूढाण एस ठिई ॥३०२।। तम्हा कट्ठाणुट्ठाणमणुचियं मुंच भो ! महासयगा ! । अणुरत्ताए मए सह भुंजसु मणवंछिए भोए ॥३०३।। तव्वयणवायगुंजाहिं चालिओ नो महासयगमेरू । भणिउं बहुप्पयारं जहाऽऽगयं रेवई वि गया ॥३०४|| एक्कारसपडिमाओ पालिय संलेहणं च काऊणं । विहिणा अणसणमेसो पडिवज्जइ वीसमे वरिसे ॥३०५।। अह तत्थ महासयगस्स तस्स घोरं तवं तवंतस्स । उप्पन्नमोहिनाणं तेण य सो पिक्खए खित्तं ॥३०६॥ पुव्वेण लवणसायर-मज्झे जोयणसहस्समेगं जा । एवं दक्खिण-पच्छिम-उत्तरओ चुल्लहिमवंतं ॥३०७|| उ8 जा सोहम्मं अहे य रयणप्पभाए पुढवीए । लोलुय-अच्चुयनरयं चउरासीवाससहस्सठिइं ॥३०८।।
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