Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 69
________________ ६० अर्धमागधी आगम साहित्य में श्रुतदेवी सरस्वती प्रो. सागरमल जैन जैन धर्म आध्यात्मप्रधान, निवृत्तिपरक एवं संन्यासमार्गी धर्म है । इस धर्म के आराध्य अर्हत् रहे हैं । प्रारम्भिक जैन ग्रन्थों और विशेष रूप से अर्धमागधी आगम साहित्य में हमें साधना की दृष्टि से अर्हतों की उपासना के ही निर्देश मिलते हैं । यद्यपि अर्धमागधी आगम साहित्य में कहीं-कहीं यक्षों के निर्देश हैं, किन्तु श्रमण परम्परा के मुनियों द्वारा उनकी आराधना और उपासना करने के कहीं कोई निर्देश नहीं है । यद्यपि कुछ प्रसंगों में अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए गृहस्थों के द्वारा इन यक्षों की पूजा के कुछ निर्देश अवश्य मिलते हैं, फिर भी यह जैन साधना का अंग रहा हो, ऐसा कोई भी निर्देश हमें प्राप्त नहीं हुआ । यद्यपि कालान्तर में जैन धार्मिक अनुष्ठानों में इनकी आराधना या पूजा के निर्देश अवश्य प्राप्त होते हैं, सर्वप्रथम मथुरा के एक जैन आयागपट्ट (प्रायः ईसा की दूसरी शती) पर एक देवी प्रतिमा का अंकन है । उसके सान्निध्य में एक जैन श्रमण खड़ा है और पास ही कुछ उपासक एवं उपासिकाएँ भी हाथ जोड़े खड़े हैं, किन्तु यह देवी कौन है ? इसका निर्णय नहीं हो सका । अभिलेख में इसका नाम आर्यावती है, किन्तु कुछ विद्वानों ने इसे तीर्थंकर माता भी कहा है (देखे चित्र १) | अर्धमागधी आगम साहित्य में सर्वप्रथम महाविद्याओं का उल्लेख है, किन्तु चौबीस शासनदेवता या यक्षियों के निर्देश परवर्ती जैन ग्रन्थों में ही उपलब्ध हुए हैं, किन्तु अर्धमागधी आगम, उनकी निर्युक्ति और भाष्य भी इस सम्बन्ध में मौन हैं। यह सब परवर्ती कालीन अर्थात् ईसा की सातवी शती के बाद ही है । अनुसन्धान ४८ प्राचीन स्तर के जैन ग्रन्थ सूत्रकृतांग ( २ / २ / १८) एवं ऋषिभाषित में विद्याओं के उल्लेख तो अवश्य हैं, किन्तु वहाँ वे मात्र विशिष्ट प्रकार की ज्ञानात्मक या क्रियात्मक योग्यताएँ, क्षमताएँ या शक्तियाँ ही हैं, जिनमें भाषाज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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