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अनुसन्धान ४८
होती है।
जहाँ तक सरस्वती के प्रतिमा लक्षणों का प्रश्न है । सर्वप्रथम खरतरगच्छ के वर्धमानसूरि (१४वीं शती) द्वारा रचित 'आचार दिनकर' नामक ग्रन्थ की प्रतिष्ठाविधि में निम्न दो श्लोक मिलते हैं -
ॐ ह्रीं नमो भगवती ब्रह्माणि वीणा पुस्तक । __ पद्माक्षसूये हंसवाहने श्वेतवर्णे इह षष्ठि पूजने आगच्छ ॥ पुनःश्वेतवर्णा श्वेतवस्त्रधारिणी हंसवाहना श्वेतसिंहासनासीना चतुर्भुजा । श्वेताब्जवीणालङ्कता वामकरा पुस्तकमुक्ताक्षमालालङ्कृतदक्षिणकरा !।
- आचार दिनकर प्रतिष्ठाविधि जहाँ तक दिगम्बर परम्परा का प्रश्न है, उस परम्परा के ग्रन्थ 'प्रतिष्ठासारोद्धार' में सरस्वती के सम्बन्ध में निम्न श्लोक उपलब्ध हैं ।
वाग्वादिनी भगवति सरस्वती ही नमः, इत्यनेन मूलमन्त्रेण वेष्टयेत् । ओं ही मयूरवाहिन्यै नमः इति वाग्देवतां स्थापयेत् ॥
_ - प्रतिष्ठासारोद्धार दोनों परम्पराओं में मूलभूत अन्तर यह है कि श्वेताम्बर परम्परा में सरस्वती का वाहन हंस माना गया है, जबकि दिगम्बर परम्परा में मयूर । हंस विवेक का प्रतीक है सम्भवतः इसीलिए श्वेताम्बर आचार्यों ने उसे चुना हो । फिर भी इतना निश्चित है कि सरस्वती इन प्रतिमा लक्षणों पर वैदिक परम्परा का प्रभाव है । साथ ही उससे समरूपता भी है । मथुरा से प्राप्त जैन सरस्वती की प्रतिमा में मात्र एक हाथ में पुस्तक हैं, जबकि परवर्ती जैन सरस्वती मूर्तियों में वीणा प्रदर्शित हैं ।
C/o. प्राच्य विद्यापीठ
दुपाडा रोड, शाजापुर (म.प्र.)
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