Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ २४ अनुसन्धान ४८ सोऊण अग्गिमित्ता गरुयं कोलाहलं निययपइणो । आगंतूणं पभणइ विणएणं नाह ! किं एयं ? ॥२६७॥ सो भणइ सुरसरूवं, तत्तो भज्जाए सो इमं भणिओ । तुह तणया सव्वे वि हु अक्खयदेहा गिहे संति ॥२६८।। देवेण दाणवेण य तुह मिच्छि(च्छ)द्दिट्ठिणा इमो विहिओ । उवसग्गो केणाऽवि हु नूणं ता नाह ! तुममिहि ॥२६९|| आलोयण-निंदण-गरिहणाहिं सोहेसु निययवयभंगं । सो वि हु तव्वयणाओ 'तह'त्ति पडिवज्जए सव्वं ॥२७०|| सावयपरियायं सो परिवालेऊण वीसवासाइं । काऊण मासमेगं पज्जंते अणसणं विहिणा ॥२७१।। सोहम्मे चउपलिओ अरुणभ्यविमाणअहिवई देवो । होउं महाविदेहे सिज्झिस्सइ खीणकम्ममलो ॥२७२।। इति सद्दालपुत्तकथानकं । छ । शुभं भवतु । छ ।।७।। ८ - [सिरिमहासयगकहाणयं] - रायगिहम्मि य सेणियराया गुणसिलयचेइ[य]उज्जाणं । नामेण महासयगो निवसइ गाहावई तत्थ ॥२७३।। रेवई पामोक्खाओ भज्जाओ तस्स तेरस अहेसि । अट्ठ य हिरन्ना(न) कोडी कमसो निहि-वुड्ढि-वित्थरओ ॥२७४|| अट्ठ वया गावीणं दसगोसाहस्सिएण माणेण । सगड-हल-पोयमाई आणंदगमेण विनेयं ॥२७५।। रेवइनामाए महासयगस्स भारियाए पढमाए । कोलघरिया य अट्ठ य हिरन्ना(न) कोडीओ अट्ठ वया ॥२७६।। सेसाण भारियाणं दुवालसण्हं पि आसि पत्तेयं । एगा हिरन्नकोडी वओ य एक्केकओ चेव ॥२७७|| अह अन्नया कयाई गुणसिलए चेइए समोसरिओ । वीरजिणिंदो देविंद-वंदिओ सत्तहत्थतणू ॥२७८।। देवेहिं समोसरणे रइए सेणियनिवो सनायरओ । एइ महासयगो वि य परिवारजुओ जिणं नमिउं ॥२७९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90