Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 32
________________ २३ जून २००९ अह सद्दालपुत्तस्स तस्स चउदसससमा वइक्कंता । सावयधम्मं रम्म सम्मं परिवालियंतस्स ॥२५३।। पन्नरसम्मि य वरिसे जिट्ठसुए ठविय गिहनियोगं सो । सावयपडिमा कमसो एक्कारसं काउमारद्धो ॥२५४॥ "दंसण-वय-सामाइय-पोसह-पडिमा-अबंभ-सचित्ते य । आरंभ-पेस-उद्दिट्ठ-वज्जए समणभूए अ ॥२५५।। पोसहियस्सेगसुरो मिच्छद्दिट्ठी कयाइ रयणीए । गहिउग्गखग्गलट्ठी उवसग्गं काउमाढत्तो ॥२५६।। 'सद्दालपुत ! जइ नो मुंचसि सीलव्वयाई निययाई । तो तुह देहं असिणा खंडाहिंडं करिस्सामि ॥२५७।। इअ दुन्नि तिन्नि वारे भणिओ जाहे न खुब्भए ताहिं । भणइ सुरो तुह पुत्ते तिन्नि वि हणिऊण तुह पुरओ ॥२५८॥ तुह देहं रुहिरेणं सिंचिस्सं, जेण तं अकाले वि । ववरोविज्जसि नूणं अट्टवसट्टो सजीयाओ ॥२५९।। तत्तो य जिट्ठ-मज्झिम-लहुए कमसो विणासिउं पुत्ते । पत्तेयं मायाए, दंसइ नवमंससुल्लाई ॥२६०॥ रुहिरेणं तद्देहं, सिंचइ तहवि तं अविचलं नाउं । गाढयरमासुरत्तो सुराहमो भणिउमाढत्तो ॥२६१॥ सद्दालपुत्त ! जइ नो दंभं मुंचसि तुमं इमं अहुणा । तो तुह धम्मसहाया समसुह-दुक्खा य जा एसा ॥२६२।। भज्जा अग्गिमित्ता, तं तुह पुरओ विणासिऊण अहं । काऊण मंससोल्ले नव तं रुहिरेण सिंचिस्सं ॥२६३।। सोऊण इमं खुभिओ चिंतइ हणिऊण पुत्ततियगं मे । को एस दुरायारो भज्जं मह अग्गिमित्तं पि ॥२६४॥ धम्माणुरत्तं धम्मसहायं च वंछए हणिउं । तं दुट्ठमिमं गेण्हामि, धावए तं निगिण्हेउं ॥२६५।। सो आसाइय खंभं 'धावह धाव' त्ति करइ हलबोलं । देवो तब्भीओ इव गयणे असणं पत्तो ॥२६६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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