Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 30
________________ जून २००९ २१ अह पोलासपुराओ सहसंबवणाओ वीरजिणचंदो । निग्गंतूणं विहरइ पडिबोहिंतो भव्वकुमुए ॥२२५।। अह गोसालो मंखलिपुत्तो निग्गंथदिढेि पडिवन्नं । परिहरियाऽऽजीवियमयं नाउं सद्दालपुत्तं तु ॥२२६।। आजीवियसंघसहिओ, ठाहि(ही) आजीवियावसहिमेइ । कइवयनियसीसजुत्तो पत्तो सद्दालपुत्तगिहं ॥२२७।। आगच्छंतं तं दटुं नो आढाइ सम्मदिट्ठी सो । तुसिणीओ संचिट्ठइ नो पडिवत्तिं कमवि कुणइ ॥२२८|| पीढ-फलगाइहेउं गुणसंथवणं जिणस्स वीरस्स । तत्तो गोसालेणं तप्पुरओ काउमाढत्तं ॥२२९॥ कहं ?महमाहणो महा-गोवो महाधम्मकही तहा । महंतो सत्थवाहो य महानिज्जामओ विय ॥२३०॥ सद्दालपुत्त ! किं एत्थ ! देवाणुप्पिय ! आगओ ? । तत्तो सद्दालपुत्तेणं वुत्तं तप्पुरओ इमं ॥२३१।। को णं एवंविहो भद्द ! केणऽढेण एवं वुच्चई । तत्तो मंखलिपुत्तेण गोसालेण वियाहिया ॥२३२॥ उप्पन्ननाणदंसणरयणो तेलुक्कवहिय-महियकमो । तह तच्चकम्मसंपयजुत्तो महमाहणो वीरो ॥२३३।। खज्जंता भिज्जंता छिज्जंता चेव लुप्पमाणा य । कूरकुतित्थियसावय-चोराईहिं भवारन्ने ॥२३४।। धम्ममएणं दंडेण रक्खिउं पउरजीवसंघाए । पावइ निव्वाण-महावाडं वीरो महागोवो ॥२३५।। उम्मग्गपडिय-सप्पहभट्ठे मिच्छत्तमोहिए जीवे । अट्ठविहकम्मतमपडल-पडयच्छन्ने य सव्वत्तो ॥२३६।। निरुवमधम्मकहाए नित्थारइ चाउरंतसंसारा । महाधम्मकही तेणं समणो भगवं महावीरो ॥२३७|| संसारमहारन्ने उप्पहपडिवन्नए बहू जीवे । सद्धम्ममयपहेणं पावइ निव्वाणवरनयरं ॥२३८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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