Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून २००९
भणिऊण तिन्नि वारं जहागयं पडिगओ य सो देवो । आजीविसावगो तं सोऊणं चिंतए हियए ॥१९७।। 'किं मम धम्मायरियो गोसालओ आगमिस्सए कल्लं । महमाणपभईहिं विसेसणेहिं समाउत्तो ?' ||१९८।। अह बीयदिणे मोहंऽधयारविद्धंसणो महावीरो । सहसंबवणे सूरो व्व एइ देवेहि थुव्वंतो ॥१९९॥ विहियम्मि समोसरणे देवेहि समागओ नयरलोओ । आजीविसावगो वि हु वियाणिऊण जिणागमणं ॥२००।। ण्हाओ कयबलिकम्मो [कय] कोउयमंगलो सुनेवत्थो । सपरीवारो वंदइ वीरं तिपयाहिणापुव्वं ॥२०१॥ धम्मकहावसाणे जिणेण सो भणिओ, समायाओ । कल्लमवरण्हसमए देवो तुझंऽतिए एगो ॥२०२॥ तेणाऽऽगासगएणं वुत्तं 'महमाहणो इहं एही । [तं पाडिहारेहि सिज्जाईहिं निमंतिज्जा]' ॥२०३।। इच्चाई अत्थि सद्दाल-पुत्त ! आजीवुवासगा तेणं । तं नो खलु गोसालं पडुच्च भणिओ इमं वयणं ॥२०४|| सोऊण इमं तो सो चिंतइ महमाहणो इमो चेव । तं पाडिहारिएहिं इमं निमंतेमि भयवंतं ॥२०५।। अब्भुट्ठिऊण तत्तो, वंदिय वीरं भणेइ-भयवं मे । पंचसया कुंभारा-र(व)णाण तुब्भे तहिं एह ॥२०६।। तप्पडिबोहणहेउं याइ जिणवरो महावीरो । पडिवज्जिऊण भयवं वयणं सद्दालपुत्तस्स ॥२०७|| अह अन्नया कयाई वायाहय-भंडगं स कोलालं । अंतोसालाहिंतो कड्ढेउं आयवे धरइ ॥२०८।। तो तं पभणइ वीरो कोलालं भंडगं कुओ एयं । सो भणइ-भट्ठियाए उदगं निठुब्भए पढमं ॥२०९।। छारेण करिसेण य मीसिज्जइ एगतो तओ पच्छा । आरोविऊण चक्के घडयाई किज्जए बहुयं ॥२१०॥
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