Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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२२
तो णं देवाणुपिया ! सिद्धत्थनरिंदनंदणो भयवं एक्को च्चिय पुहवीए महसत्थाहो महावीरो ॥२३९॥ संसारमहसमुद्दे उब्बुड - निब्बुड (-ड्ड) णाई कुणमाणे । नित्थारिय बहुजीवे धम्म [म] ईए उ नावाए ॥ २४०॥ निव्वाणतीरऽभिमुहे पावइ नियकरयलेण सो जम्हा । तेण महानिज्जामय - सद्देणं भन्नए वीरो ॥२४१|| तत्तो सद्दालपुत्तो सो सोऊणं गुणसंथवं । जहत्थं वीरनाहस्स हट्ठत्तुट्ठी पपई ॥ २४२॥ इयछेओ इयनिउणो तुममेवं वयणलद्धिसंपन्नो । मंखलिपुत्त ! पहू ?, मे धम्मायरिएण वीरेण ॥२४३॥ धम्मोवएसएण सद्धिं काउं विवायमिहमहुणा । तो गोसालो पभणइ 'नो एसट्ठे समट्ठे' त्ति ॥ २४४॥ जम्हा जहा को वि नरो तरुणो बलवं सुपीवरसरीरो । अय-मिग-सूअर-कुक्कुड- तित्तिरि-लावाइए जीवे ॥२४५॥ हत्थे वा पाए वा पुच्छे वा गहिय निच्चले धरई । एमेव ममं वीरो धरइ दढं हेउ जुत्तीहिं ॥ २४६॥ तं न सहो काउमहं वायं सद्दालपुत्त वीरेण । तुह धम्मायरिएण परवाइगइंदसीहेण ॥२४७॥ तो वीरजिणजहट्ठियगुणगणहावज्जिओ सुदिट्ठी । सो सद्दालपुत्तनामा उवासगो भणइ गोसालं ॥२४८॥ जं वीरजिणस्स तुमं गुणसंथवं करेसि सब्भूयं । पीढ - फलगाइएहिं तुमं निमंतेमि तेणाहं ॥ २४९॥ 'नो धम्मो 'त्ति तवो त्ति य काउं, तं गच्छ कुंभसालासु । मह पाडिहारियासुं जहामुहं चिट्ठ तं तत्थ ॥२५०॥ तो तव्वया ठाउं तत्थ तओ पन्नवेइ सद्दिट्ठि । आजीवियदिट्ठि पइ बहुसो सद्दालपुत्तं सो ॥२५९॥ नो तं निग्गंथाओ पावयणाओ स चालिउं तरइ । ताहे संतो तंतो पोलासपुराओ निक्खतो ॥ २५२॥
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अनुसन्धान ४८
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