Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 65
________________ अनुसन्धान ४८ पुष्पमालाचिंतवणी सं. विजयशीलचन्द्रसूरि घणा वखत अगाऊ खंभातना भण्डारमा आ नामे प्रति नजरे चडतां, मनोविनोद खातर तेनी नकल ऊतारेली. ते हमणां अचानक हाथमां आवतां, जेमनी तेम अत्रे रजू थाय छे. विविध ३१ जातनां पुष्पोनां नामो साथे उल्लासप्रेरक वर्णन करतां ३१ दोहरानी आ कृति छे. दुहा गुर्जरभाषामां होवाथी स्वयंस्पष्ट छे, रसिक जनोने रसोत्सव थाय तेवी छे आ लघुकृति. प्रायः २ पानांनी प्रतिमां प्रारम्भे अहीं आप्यां छे ते ५ कोष्टको छे, ते अत्रे यथावत् आपवामां आव्यां छे. लोगे छे के ते कोई बाल-क्रीडा अर्थात् रमत माटे हशे. ते पांचे कोष्टकना मथाळे आपेल १, २, ४, ८, १६ ए आंकडाओनो सरवाळो ३१ थाय छे, जे ३१ दुहामां वर्णवेल ३१ पुष्पोनो संकेत करे छे. आना कर्ता कोण-ते विषे कशी सूचना मळती नथी. पुष्पिकामां जे जैन साधुनुं नाम छे, तेनी आ रचेली चीज होई शके ? अलबत्त, आ एक अटकळ मात्र छे. चांपो । मोगरो | कंदली | धतूरो पान केसू कमोदनी |सुदरसणो पाडल सेवत्री | करणी हारसणगार अंवकेस | तडतडी | करीर बउलसिरी चंवेली | केतकी । कंदली | धतुरो कमल | कमोदनी कंद सुदरसणो कणियर | करणी | सिरषंडी हारसणगार आफु | बोलसरी | | सहकार | करीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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