Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 66
________________ जून २००९ गुलाब मोगरो केतकी धतूरो पाण सु कंद सुदरसणो सदावतंस सेवत्री सिरषंडी हारसिणगार केवडो तडतडी सहकार करीर १६ Jain Education International जूई पान पोईण केसु कमल कमोदनी कंद सुदरसण सुरजनो अंवकेस केवडो तडतडी आफु बोलसरी सहकार करीर ८ जूई पान पोईण सुदरसण कमल कमोदनी कंद सुरजनो अंवकेस केवडो तडतडी आफु बोलसरी सहकार करीर (पुष्पमाला चिंतवणी ) जेहने उपमा देत है कवि कामिनीनें अंग । अदभूत सरस सुगंधता चंपा फूल सुरंग ॥१॥ ज्यु निरमल कुल कामनी शीलसुगंधसुवास । पुजे तिम बहु पाईये फूल गुलाब सुवास ॥२॥ सज्जनकेरी प्रीतडी दिन दिन अधकी थाय । मोगर केरा फूल जिम परिमल कह्यो न जाय ॥३॥ तीलसरीसा गुण पलकमै दाषै जेह अमूल । ते सजन कीम वीसरै जिम चंवेली फूल || ४ || कदली गरम सकोमली जेहनी अदभूत देह | ते सज्जन सषी संभरें जिम बप्पीआ मेह ॥५॥ सुंदररूप सुरंगपणि जेह सकंटक होय । ते दूरि सषी परिहरी केतकी ईसर जोय ||६|| For Private & Personal Use Only ५७ www.jainelibrary.org

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