Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 26
________________ जून २००९ अह कुंडकोडिओ तं पभणई उट्ठाण - कम्म - विरियाई । जइ नत्थि, तुमे लद्धा, कहं इमा (कहिमा ) भो ! दिव्वदेविड्डी ? || १७० ।। अह भणसि अणुट्ठाणाइणा इमा भो ! मए समणुपत्ता । ता किं ते न लहंती उट्ठाणाई न जेसऽत्थि ? ॥ १७१ ॥ इय कुंडकोलिएणं भणिओ सो संकिओ नियमम्मि । न खमो वुत्तुं मुत्तुं मुद्दाईयं गओ देवो ॥ १७२ ॥ अह तत्थ बीयदिवसे सहसंबवणम्मि जिणसमोसरणं । नाऊण कुंडकोलिय-उवासगो हट्ठ- तुट्ठमणो || १७३ || नियपरियणपरियरिओ कंपिल्लपुरस्स मज्झमज्झेणं । गंतूण जिणं पणमिय धम्मं निसुणेइ विणयजुओ ॥१७४॥ तयणंतरं जिणं भणिओ सो कुंडकोलिओ एवं । तुझंऽति य देवो समागओ कलमवरहे ॥ १७५ ॥ मिच्छद्दिट्ठी तुमए विहिओ निप्पट्ठ- पसिण - वागरणो ॥ तो धन्नो सि तुमं जो, करेसि एवं कुपहमहणं ॥ १७६ ॥ आमंतेउं गोयमाईसमणा उ तह [य] समणीओ । भणइ जिणो जइ गिहिणो, मिच्छद्दिट्ठीण निम्महणं ॥ १७७॥ एवं कुणंति चउदसपुव्वीहिक्कारसंऽगधारीहिं । सविसेसं कायव्वं तुब्भेहिं कुतित्थिनिम्महणं ॥ १७८॥ पडिवण्णं जिणवयणं 'तह' त्ति समणेहिं तह य समणीहिं । तो कुंडकोलिओ नमिअ जिणवरं सगिहमणुपत्तो ॥ १७९ ॥ सीलव्वयाई सम्मं पालितो कुंडकोलिओ सड्ढो । साहुजणदाणनिरओ चउदसवरिसे अइक्कमइ ॥ १८०॥ पनरसमे पुण वरिसे गिहवावारं निवेसियं सयलं । जिट्ठसुम्मि सयं पुणो (ण) पोसहसालाए सुद्धमणो || १८१ ॥ एक्कारस पडिमाओ कमसो सुत्ताणुसारओ सम्मं । पालितो विहिणा सो जाओ तवसोसियसरीरो ॥१८२॥ सावयपरियायं सो परिवालेऊण वीस वासाइं । काऊण मासमेगं पज्जंते अणसणं विहिणा ॥ १८३ || Jain Education International १७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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