Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून २००९
तं सोऊण सो खुहिओ, धावइ तं पइ, सुरो गओ गयणे । खंभं आसाइत्ता कुणइ य कोलाहलं गरुयं ॥१४५।। तो भद्दा से माया समागया भणइ 'पुत्त ! किं एयं ? । सो भणइ सुरसरूवं तत्तो मायाएँ सो भणिओ ॥१४६।। उवसग्गो पुत्त ! इमो विहिओ केणवि ता तुमं इण्हि । आलोयण-निंदण-गरहणाहिं सोहेसु वयभंगं ॥१४७।। चुलणीपिया वि पडिवज्जिऊण जणणीए चोयणं सम्मं । आलोयण-निंदण-गरहणाहिं सोहेइ वयभंगं ॥१४८॥ सावयपरियायं सो परिवालेऊण वीस वासाई । काऊण मासमेगं पज्जते अणसणं विहिणा ॥१४९॥ सोहम्मे चउपलिओ अरुणप्पहविमाणअहिवई देवो । होउं महाविदेहे सिज्झिस्सइ खीणकम्ममलो ॥१५०॥
इति चुलिनीपिताकथानकं ॥छ।। ३॥ ४ - [ सिरिसुरादेवसावगकहाणयं]
वाणारसि जियसत्तू कोठें छक्कोडीपहू सुरादेवो । धन्ना भज्जा, सामी समोसढो धम्मगहणं च ॥१५१॥ पडिमापडिवन्नस्स य देवागमणं च पुत्ततियगस्स । पंचेव मंससोल्ले काउं रुहिरेण सिंचेइ ॥१५२॥ तह वि हु तं अक्खुभियं नाउं पभणइ सोलसायंके । तुह देहम्मि खिविस्सं, खुभियं संबोहइ धन्ना ॥१५३॥ सावयपरियायं सो परिपालिऊण वीस वासाइं । काऊण मासमेगं पज्जते अणसणं विहिणा ॥१५४॥ सोहम्मे चउपलिओऽरुणकंतविमाणअहिवई देवो । होउं महाविदेहे सिज्झिस्सइ खीणकम्ममलो ॥१५५॥
इति सुरादेवकथानकं । छ ॥४॥ ५ - [ सिरिचुल्लसयगसावगकहाणयं] -
आलहिया जियसत्तू संखवणं, चुल्लसयग छक्कोडी । बहुला भज्जा, सामी समोसढो धम्मगहणं च ।।१५६।।
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