Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 22
________________ जून २००९ अह भणइ वड्ढमाणो गोयम ! सच्चं कहेइ आणंदो । ता कह पायच्छित्तं अरिहइ सो निरवराहो वि ॥११९।। तं पुण विचित्तछउमत्थनाणआवरणजोगओ इत्थं । जाओ पच्छित्तऽरुहो, आलोएसु ता तुमं सम्मं ॥१२०।। तह खामसु गंतूणं आणंदं सावयं सयं[तं] तु । ता विणएण पडिच्छिय गोयमसामी कुणइ सव्वं ॥१२१।। आणंदो निव्विग्धं सीलव्वयं गुणव्वयाई पालेउं । फासित्ता पडिमाओ उवासगाणं समग्गा वि ॥१२२।। मासं च कयाणसणो पज्जते सुद्धचित्तपरिणामो । वीसवरिसाइं सावयपरियायं पूरिउं सयलं ॥१२३।। सोहम्मदेवलोए सोहम्मवडिंसगस्स ईसाणो । अरुणविमाणाहिवई चउपलियाओ(ऊ) सुरो जाओ ॥१२४॥ तत्तो चुओ स जम्मं महाविदेहम्मि उत्तमकुलम्मि । पाविय, भोगसमिद्धिं पढमवए चेव चइऊण ॥१२५।। पव्वज्जं निरवज्जं सम्मं परिवालिऊण कम्मखए । उप्पाडिऊण केवलनाणं सिज्झिस्सइ महप्पा ॥१२६।। आणंदश्रावककथानकं समाप्तम् । छ । शुभं भवतु लेखक - पाठकयोः ॥छ। २ - [ सिरिकामदेवसावगकहाणयं] अंगा जणवय, चंपा, जियसत्तू कामदेवो कोडंबी । भद्दा भज्जा तह पुन्नभद्दनामं च उज्जाणं ॥१२७।। छक्कोडीओ निहाणे वुड्ढीए छच्च, छच्च वित्थारे । छच्चेव वया दसगो-सहस्समाणेण उ वएण ॥१२८।। वीरजिणसमोसरणं तस्स समीवम्मि धम्मपडिवत्ती । पन्नरसम्मि य वरिसे गिहभारं जिट्ठपुत्तम्मि ।।१२९॥ निक्खविऊणं पोसह-सालाए वीरधम्मपन्नत्ति । पडिमापडिवनस्स य पच्छिमपहरम्मि राईए ॥१३०॥ मिच्छद्दिट्ठिसुरेणं पिसाय-करि-भुयंग-भूयकरणेहिं । अच्चंतभीसणेहिं कमसो उवसग्गकरणेणं ॥१३१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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