Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ४८
पडिमापडिवन्नस्स य देवागमणं च पुत्ततियगस्स । सत्तेव मंससोल्ले काउं रुहिरेण सिंचेइ ॥१५७।। तं अक्खुभियं नाउं भणइ सुरो त(तु)ह हिरन्नकोडीओ । गिण्हेउं छ इमाओ निही वुड्ढी वित्थराओ अहं ॥१५८॥ आलभिया सिंघाडग-चाउक्क-तिय-चच्चरेसुं सव्वत्थ । विप्पइरिस्समहं खलु खुभियं संबोहइ भज्जा ॥१५९।। सावयपरियायं सो परिवालेऊण वीस वासाइं । काऊण मासमेगं पज्जंते अणसणं विहिणा ॥१६०॥ सोहम्मे चउपलिओऽरुणसिट्ठविमाणअहिवई देवो । होउं महाविदेहे सिज्झिस्सइ खीणकम्ममलो ॥१६१।।
इति चुल्लशतकश्रावककथा ॥छ। ५। ६ - [सिरिकुंडकोलियसावयकहाणयं] -
पंचाला कंपिल्लं जियसत्तू, कुंडकोलिय कुडुंबी । पूसा य तस्स भज्जा, सहसंबवणं च उज्जाणं ॥१६२।। कोडीओ हिरन्नस्स य छच्च निही-वुड्ढी-वित्थरेसु कमा । छच्च वया जिणपासे सावयधम्मस्स पडिवत्ती ॥१६३।। अह अन्नया य पच्चा-वरण्हसमए असोगवणियाए । पुढविसिलाए नामा[म] मुद्घ तह उत्तरिज्जं च ॥१६४।। ठविउं वीरभयवओ उवसंपज्जित्तु धम्मपन्नत्तिं । जा चिट्ठइ ज्झाणपरो ता चेगो एइ एत्थ सुरो ॥१६५।। पुढविसिलापट्टाओ नाममुद्दोत्तरिज्जए गहिउं । आगासे ठिओ सो कुंडकोलियं भणिउमाढत्तो ॥१६६।। पवरा गोसालस्स य मंखलिपुत्तस्स धम्मपन्नत्ती । जम्हा नो उट्ठाणं कम्मं बलं वीरियं वा वि ॥१६७|| नो पुरिसक्कार-परक्कम्मस्स जोगो वि वट्टए को वि । तह सव्वे वि हु भावा नियमा जं वन्निया एत्थ ॥१६८।। समणस्स भगवओ पुण वीरस्स न चारु धम्मपन्नत्ती । जम्हा पुण उट्ठाणाई संति इहं अनियया भावा ॥१६९।।
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