Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 27
________________ अनुसन्धान ४८ सोहम्मे चउपलिओ अरुणगवविमाणअहिवई देवो । होउं महाविदेहे सिज्झिस्सइ खीणकम्ममलो ॥१८४॥ इति कुंडकोलिकश्रावककथानकं समाप्तं । छ । ६ ॥ ७ - [ सिरिसद्दालपुत्तकहाणयं] - पोलासं जियसत्तू सहसंबवणाभिहाणमुज्जाणं । सद्दालपुत्त आजीवु[वगु]वासगो कुंभगारो य ॥१८५।। लट्ठो गहियट्ठो पुच्छियट्ठो विणिच्छियट्ठो य । आजीवमए अहिगयअट्ठो पिम्माणुरत्तो य ॥१८६।। एक्का हिरन्नकोडी, निहि-वुड्ढि-पवित्थरेसु पत्तेयं । तह एगो तस्स वओ भज्जा पुण अग्गिमित्ता य ॥१८७।। पंचसयकुंभगारा-वणेसु पुरबाहिरम्मि तस्स सदा । दिन्न-भइ-भत्त-वेयण-पुरिसा कम्माई कुव्वंति ॥१८८।। घड-पिहड-अद्धघडए वरए करए उट्टियाओ य । कलसाऽलिंजर-जंबूलए य निच्चपि य कुणंति ॥१८९।। रायपहविवणिमझे धरिऊणं विक्किणंति तस्सऽन्ने । पुरिसा दिवसे दिवसे, तस्सेवं जंति दियहाइं ॥१९०॥ अह अन्नया कयाई सो अवरण्हे असोगवणियाए । गोसालधम्मपन्नत्तिसंजुओ ठाइ एगते ॥१९१॥ एत्थंतरम्मि एगो देवो आगाससंठिओ मइमं । भासुरवरबुदिधरो पभणइ दिव्वंऽबराऽऽहरणो ॥१९२।। 'सद्दालपुत्त ! आजीवु-वासगा ! भद्द ! एहीइ कल्लं । मह-माहण सव्वन्नू अरहा तह केवली य जिणो ॥१९३।। उप्पन्ननाण-दंसणधारी तियलोकवहिय-महियकमो । सुर-असुर-निवइ पूइय-सक्कारिय-पणयकय(म)कमलो ॥१९४।। पच्चुप्पन्नाऽणागय-अईयसमयस्स जाणओ मइमं । तह तच्चकम्मसंपयसंजुत्तो खीणमोहो य ॥१९५।। तं वंदिज्ज नमंसिज्ज सायरं संथुणिज्ज सेविज्जा । तह पाडिहारिएहि सिज्जाईहिं निमंतिज्जा ॥१९६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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