Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ४८
परिसाए पडिगयाए गोयमसामी वि छट्ठपारणए । सामिं वंदिय पविसइ वाणियगामम्मि भिक्खट्ठा ॥१०५।। पंचसमिओ तिगुत्तो हिंडंतो गहियभत्तपाणो य । कोल्लागसंनिवेसम्मी गच्छंतो सुणइ जणवायं ॥१०६।। 'अत्थि इहं आणंदो अंतेवासी जिणस्स वीरस्स । संलेहणाइपुव्वं पडिवन्नो अणसणं विहिणा' ॥१०७|| तत्तो गोयमसामी गच्छइ कोल्लागसंनिवेसम्मि । जत्थऽच्छइ आणंदो पोसहसालाए नियमत्थो ॥१०८।। इंतं गोयमसामि आणंदो पासिऊण साणंदो । भणइ 'न सत्तो भंते ! तुम्ह समीवं हमागंतुं ॥१०९।। ता इच्छाकारेणं आगच्छह इत्थ मह समीवम्मि । जेणाहं तुह पाए सिरसा वंदामि तिक्खुत्तो ॥११०॥ तो वंदित्ता पुच्छइ आणंदो गोयमं जहा भंते ! । गिहिणो गिहट्ठियस्स वि उप्पज्जइ ओहिनाणं किं ? ||१११।। ता गोयमेण भणियं, 'उप्पज्जई', सो भणइ जइ एवं तो । ममावि तमुप्पन्नं इइ भणिउं कहई पुव्व(व्वु)त्तं ॥११२।। अह भणइ गणाहिवई, आणंदा ! न त्थि एत्तिओ विसओ । गिहिणो ओहिन्नाणे, ता आलोयाहि एत्थ तुमं ॥११३।। निंदण-गरहणपुव्वं पायच्छित्तं संपवज्जाहि ।। तो भणइ आणंदो 'किं भंते ! जिणवरमयम्मि ॥११४।। संताण वि अत्थाणं सब्भूयाणं च होइ पच्छित्तं ?' । 'न हुन हु सब्भूयत्थे, पच्छित्तं' गोयमो भणइ ॥२१५।। जइ एवं तो भंते ! गिण्हह तुब्भे वि इत्थ पच्छित्तं । जम्हा पेच्छामि अहं ओहिन्नाणेण इइ खित्तं ॥११६।। तत्तो गोयमसामी संकाइ समन्निओ दुयं जाइ । सिरिवीरजिणं नमिउं आलोइय भत्तपाणं च ॥११७|| आणंदसावयस्स य कहिऊणं ओहिनाणवुत्तंतं । पुच्छइ 'पायच्छित्ती किं आणंदो उयाहु अहं ? ॥११८।।
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