Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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१०
अनुसन्धान ४८
कप्पूरागरुचंदण-कुंकुमपभिई विलेवणं होउ । एगं च सुद्धपउमं मालइमालाइ पुप्फाइं ॥७७|| मठें कन्निज्जजुअं नाममुदं च होउ आहरणं । धूयणविहिमवि वज्जे अगुरु-तुरुक्काई(इयं) मोत्तुं ॥७८।। भोयणविहीए पेज्जा-विहिम्मि मह कट्ठपिज्जणया । भक्खणविहीए घयउर तह खंडयरखज्जया चेव ॥७९।। कलसूय कलमसाली सेसं सूओयणं परिहरामि । घयमवि सारग्रं गो-घयवज्जं वज्जेमि सयकालं ॥८०।। चुच्चुय-सुत्थिय-मंडुक्कसागसेसं चएमि सागविहिं । पालक्का माहुरयं सेसं वज्जेमि माहुरयं ॥८१।।। आगासोदगवज्जं उदगं सेसं सया वि पच्चक्खे । तंबोलं पंचसुगंधियं च सेवे न उण सेसं ॥८२।। कम्मयओ बीयगुणव्वयम्मि खरकम्म-कम्मदाणाई । पनरस वज्जेमि अहं पुव्वुत्तपरिग्गहे जयणा ॥८३।। चउहा अणत्थदंडं वज्जे तत्थाइमं अवज्झयणं । पमायायरियं हिंसप्पयाण पावोवएसं च ॥८४।। तह सामाइयं देसा-वगासियं पोसहोववासं च । अतिहीणं संविभागं पडिवज्जइ सुत्तविहिणा उ ॥८५।। एवमणुव्वय-गुणवय-सिक्खावयसंजुयम्मि गिहिधम्मे । पडिवने भणइ जिणो, आणंदा ! एत्थ अइयारा ॥८६॥ सम्मत्ताईएसुं सव्वेसु वि पंच पंच हुंति कमा । जाणिय परिहरिअव्वा गिहिणा सुत्ताणुसारेण ॥८७।। अह संलेहणजोग्गं तस्स सरूवं वियाणिय भविस्सं । संलेहणं पि साहइ अइयारसमत्तियं वीरो ॥८८|| तो आणंदो सम्मत्तमूलमिय गिण्हिऊण गिहिधम्मं । नाणाभिग्गहजुत्तं संतुट्ठो जाइ नियगेहं ॥८९।। कहिऊण धम्मपडिवत्ति-वइयरं भारियं सिवाणंदं । वीरजिणवंदणत्थं पेसइ गिहिधम्मपेस(पसि)णट्ठा ॥१०॥
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