Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून २००९
अब्भुट्ठिऊण जिणनाहसविहमागम्म नमिय पयकमलं । विणएण पंजलिउडो विन्नविउमेवमाढत्तो ॥६२।। भयवं ! जह तुह पासे राईसरमाइया बहू लोया । तणमिव पडग्गलग्गं नियगेहं सिरिं परिच(च्च)च्चा ॥६३।। पडिवन्ना पव्वज्जं, न समत्थो हं तहा तिजगनाह ! । ता पसिऊणं सावय-वयाइमारोवे(व)सु ममं पि ॥६४।। तो भणइ जिणवरिंदो आणंदं अमियमहुरवाणीए । देवाणुपिया ! तुमए, नो पडिबंधो विहेयव्वो ॥६५।। तो आणंदो पढमे जावज्जीवाए दुविहतिविहेण । थूलगपाणाइवायं पच्चक्खइ जिणवरसमीवे ॥६६।। थूलं च मुसावायं पच्चक्खइ दुविह-तिविहं जाजीवं । एवमदत्तं थूलं दुविहं तिविहेण जाजीवं ॥६७॥ सिवनंदं मोत्तूणं उराल-वेउव्वियाओ इत्थीओ । जावज्जीवं वज्जे दुविहं तिविहेण सुद्धमणो ॥६८॥ परिगहपरिमाणम्मि निहिम्मि वुड्ढीए वित्थरेसुं च । पत्तेयं पत्तेयं कोडिचउक्कं हिरण्णस्स ॥६९।। दस गो-साहस्सिय-वयचउक्कपरओ चउप्पयं नियमे । खित्तम्मि पंचहलसय चत्तूण य सेस नियमे(?) ||७०|| दिसिजत्तियाण सगडाण तह संवाहणियाण पंचसया । परओ सगडविहिम्मि पच्चक्खाणं अहं काहं ॥७१।। दिसिजत्तियाण पोयाण तह संवहणियाण चउण्हं । परओ पोयविहिं पि हु पच्चक्खे जावजीवमहं ॥७२॥ मुत्तूण गंधकासाइयं वत्थाई मज्जणनिमित्तं ।। सेसं उवभोगवए वज्जे अंगाई(इ-) लूहणयं ॥७३।। अल्लमहुलट्ठिदंत-वणयं च मह एगमेव मुक्कलयं । खीरामलयं एगं फलविहिमज्झम्मि जाजीवं ॥७४|| तिल्लं सयपाग-सहस्सपागमभंगणे महं होउ । गंधट्टयं च एगं सुरहिं उव्वट्टणविहीए ॥७५।। अट्ठहिं उट्टिअघडएहिं मज्जण सेसयं तु पच्चक्खे । वत्थम्मि खोमजुयलं मुत्तुं सेसं परिहरामि ॥७६।।
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