Book Title: Anusandhan 2009 07 SrNo 48
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 16
________________ जून २००९ देवच्छन्दो वि कओ रयणमओ वंतरसुरेहिं ॥३३॥ देवेहिं दुंदुहीओ पहयाओ नहयलं रसंतीओ । हक्कारंति व्व जणं ओसरणे धम्मसवणत्थं ॥३४।। अह पुव्वदुवारेणं पविसिय काउं पयाहिणं वीरो । सीहासणे निविट्ठो 'तित्थस्स नमो' त्ति भणिऊणं ॥३५॥ पुव्वाभिमुहो; तत्तो तिदिसं पडिरूवगा सुरेहिं कया । ते वि हु जिणप्पभावा पच्चक्खं जिण व्व दीसंति ॥३६।। अह जियसत्तुनरिंदं गंतुं उज्जाणवालओ तुरियं । वद्धावइ हिट्ठमणो जिणआगमणप्पवित्तीए ॥३७।। दाऊण पा[रि]ओसिय-दाणं उज्जाणवालयस्स तओ । चउरंगबलसमेओ नायरलोएण परियरिओ ॥३८|| जयकुंजरमारूढो सियछत्तेणं धरिज्जमाणेणं । वीइज्जतो सियचामरा(रे)हिं जियसत्तुनरनाहो ॥३९।। तित्थयरवंदणत्थं चलिओ भत्तीए महाविभूईए । रुइरालंकारधरो पच्चक्खं कप्परुख़ु व्व ॥४०॥ णाऊण जिणागमणं आणंदो गहवई य साणंदो । पहाओ कयबलिकम्मो कयकोउयमंगलसमूहो ॥४१॥ अप्प-महग्घाभरणेहिं भूसिओ पवरपरिहियदुकूलो । नियसयणपुरिसवंदेण परिगओ पायचारेणं ॥४२॥ संतुट्ठरायवियरिय-वरछत्तेणं धरिज्जमाणेणं । वियसियकोरंटपलंबमाणमालाभिरामेणं ॥४३।। नियगेहा निग्गंतुं चलिओ जियसत्तुराइणा सद्धि । भयवंतवंदणत्थं भत्तिभरापूरियसरीरो ॥४४|| पुव्वदुवारेण मुणी विमाणदेवीओ तह य समणीओ । पविसिय पयक्खिणेणं अग्गेयदिसाए निवसंति ॥४५॥ भवणवइ-वाणमंतर-जोइसियाणं विसंति देवीओ । दाहिणदारेण पयक्खिणाए निवसंति नेरईए ॥४६|| जोइसिय-भवण-वणयरा देवा पविसंति पच्छिमदुवारा । वीरं पयक्खिणित्ता वंदिय निवसंति ईसाणाए (वायवीए) ॥४७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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