Book Title: Anusandhan 1993 00 SrNo 02 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 9
________________ ओसरी ११-६ उसरी खालतो बाळतो बालतो गालतो फेरवे फोरवइ भोग योग (१०) दूहा : ढाल ११ : कृष कृखि भचके भकइ नीति ऋजुमार्ग तें नीतिमार्ग ते तिं सबल सयल झकोले छकोलइ पाडीन पाठीन बोले बोली (११) ढाल १२:४-३ १०-१ (१२) दूहा : २-२ लइ लहइ रूसो परि रूसो पर शोकनी परि नीत शाकिनि परि निति ऊगरस्यै तो पंक ऊगरस्यइ पंक वृथा यथा पिठि पिट्ठि विंध्य वंध्य विंध्याचल वंध चल वनने कुंज वननिकुंज भोलिडा रे हंसा रे भोलूडा रे हंसा देखो देखी ते उत्पत्ति रे ते उत्पातिं रे ढाल १३: १०-१ (१३) दूहा : तालक्ख नालक्ख १-४ २-४ ३-४ ९-३ मूकने करे सागरस्यु फिरिअ पाओ मुंझइ करि समुद्रस्यु फिरि नींपाउं ढाल १४ : .. [४] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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